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वक्तृत्वकला के बीज ८, मनुष्य की सफलता-असफलता का द्योतक चारित्र ही है यदि वह सफल है तो जीवन सफल है अन्यथा असफल ।
-रोमो ६. कुलीनमकुलीनं बा, वीरं पुरुषमानिनम्, चारित्रमेव व्याख्याति, शुचि वा यदि वा शुचिम् ।
--वाल्मीकिरामायण ॥१०६४ मनुष्य के चारित्र (आचरण) से ही पता चलता है कि यह कुलग्न है वा कुलहीन, सच्चा वीर है या यों ही डींगे मारने.
घाला तथा पवित्र है या अपवित्र । १०. सम्यकचारित्र के बिना इन्सान बिना छत का
मकान है। ११. चारित्र के बिना जीवन रोमन की हुई खोखली लट्ठो
१२. धर्म, उपदेश, कविता, चित्र, नाटक आदि किसी भी चीज का बिना चारित्र के मूल्यांकन नहीं होता।
-जे० जी० हालेख १३. शिक्षा नहीं अपितु चारित्र ही मनुष्य को सर्वोच्च आवश्यकता है।
-स्पेन्सर १४. स पुमान् पटावृतोऽपि नग्न एव,
यस्य नास्तिसच्चारित्रमावरणम् । स नग्नोऽप्यनग्न एव, यो भूषितः सच्चारियण ।।
—नीतिवाक्यामृत २६।५१-५२