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वक्तृत्वकला के योज
जीव से रहित शरीर शव [मुर्दा-लाश ] है, इसी प्रकार सम्यग्दर्शन से रहित व्यक्ति चलता-फिरता शव है । शव लोक में अनादरणीय होता है और वह चौकोर
अर्थात् धर्मसाधना के क्षेत्र में अनादरणीय रहता है ।
--दर्शन पाहुड २
जो दर्शन से हीन (सम्यकश्रद्धा से रहित या पतिल ) है वह वन्दनीय नहीं है ।
१०. दंसणहोणो ण बंदिब्बो ।