SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१ सम्यकत्व का महत्व १. दसणमूलो धम्मो। -दर्शनपारड, शर घमं का मूल दर्शन (सम्यक श्रद्धा) है । २. मूलं धर्मस्य सम्यक्त्वम् । --हिंगुल प्रकरण सम्यक्त्व ही धर्म का मूल है । ३. कनौनिकेव नेत्रस्य, कुसुमस्येब सौरभम् । सम्यक्त्वमुच्यते सारं, सर्वेषां धर्मकर्मणाम् ।। आम्स की क्रीकी एवं फलों की सुरभिवत् सभी धर्मकर्मों का सार सम्यक्त्व हैं। सम्यक्त्व मुलानि महाफलानि । -धर्मपरीक्षा यथाख्यातचारित्र - केवलज्ञानप्राप्ति आदि महाफलों का मूल सम्यक्त्व ही है। सम्यक्त्वसहिता एव, शुद्धा दानादिका क्रियाः । - अध्यात्मसार दानादि प्रियाएँ सम्यवस्त्र होने से ही पूर्णतया शुद्ध होती है । पात्र चारित्रवित्तस्य, सम्यक्त्वं श्लाध्यते न कः । ___सूक्तमुक्तावलि चारित्ररूप धन को रखने के लिये सम्यक्त्व ही एक पात्र है। उसकी प्रशंसा कौन नहीं करता !
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy