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________________ नास्तिक १. नास्ति पुण्यं पापभिति मतिर्यस्य स नास्तिकः । - सिद्धान्तकौमुदी न' पुण्य है, न पाग है--ऐसी जिगकी मान्यता हो, वह नास्तिक नास्तिको वेदनिन्दकः । -मनुस्पति २।११ वैद की निन्दा करनेत्राला मास्तिक होता है । (यहाँ वेद का अर्थ ज्ञान समझना चाहिए ।) 1. पृराने जमाने में ईश्वर पर विश्वास नहीं करनेवाला नास्तिक होता था और नये धर्म में स्वयं पर विश्वास न करनेवाला नास्तिक कहलाता है। ___ - विवेकानन्द ४. परमात्मा को न माने वह नास्तिक है, पर जो श्रद्धाहीन है, वह महानास्तिक है। --- आचार्य तुलसी ५. बेदना और भय के समय कोई प्रकृति नास्तिक नहीं रहती। ___ - एच. मोर ६. रात्रि के समय एक नास्तिक ईश्वर में आधा विश्वास करने लग जाता है। –यंग ७. सर्व प्रथम मैं ईश्वर से भय मानता हूं और फिर नास्तिक से । -शेषसाची
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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