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पादगत
संयुक्त
T आदिगंत मध्यरात अन्तगन
चतुर्थः परिच्छेदः ।
अमक
आदिगत मध्यगत अन्तगत
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असंयुक्त संयुक्त असंयुक्त संयुक्त असंयुक्त
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आदिगत मध्यगत अन्तर्गत
वर्णगव
आदिगत मध्यगत अभ्तगत
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आदिगत मध्यगत अन्तगत
विगत मध्यगत अन्तगत 'पाद' श्लोक के चतुर्थांश को कहते हैं, 'पद' विभक्तियुक्त शब्द को कहते हैं क्योंकि पाणिनि का सूत्र है- 'सुप्तिङन्तं पदम्' अर्थात् जिसमें सुप् और तिब् आदि प्रत्ययों से युक्त विभक्ति लगी हो उसे पद कहते हैं। अचर को वर्ण कहते हैं ॥ संखुतावृत्तौ पादयमकमाह
दयां चक्रे दयाश्चक्रे । सतां तस्माद्भवान्वितम् ॥ २३ ॥
हे राजन् यस्माद्धेतोर्भवान् दयां चक्रं करुणा चकार तस्मात्कारणाद्भवान् सत साधून वित्तदा दत्तवान् । तान्दछन् ॥ २३ ॥
आप ने दया की जिससे सज्जनों को द्रव्यदान किया ।
- यह 'चूडा' नामक छन्द का पाद है क्योंकि उसमें प्रत्येक पाद चार वर्णों का होता है । अतः 'दर्षा चक्रे' इस प्रथम ( आदि) पाद की वृति से द्वितीय पाद की रचना की गई है। अतः इसमें 'संयुतावृत्तिमूलक आदि पादयमक' है ॥ २३ ॥
४ घा० लं०