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वाभिटाला। अयं तु प्रकारकरणाख्यो त्चवर्णने सम्पूर्ण प्रबन्ध भवति । यथा रसिविखाप कुमारसम्भरे ।। __परस्पर अनुरक्त स्त्री-पुरुष में किसी एक-सी अथवा पुरुष के देहावसाम हो जाने पर करुण नार उत्पन होता है। (करम शार) सवर्णन में ही होता है (जैसे कि 'कादम्बरी' में पुण्डरीक और महाश्वेता का दूधान्त ) ॥२०॥
शृगाररसं सत्सम्बन्धि चान्यदपि सर्वमुक्त्वा वीरावीरसानानत्र वीरमाह
उत्साहात्मा भवेद्वीरखिधा धर्माजिदानतः ।
नायकोऽत्र भवेत्सर्वैः ममाव्यैरविगतो गुणैः ॥ २१ ॥ दौरो रस उस्साशस्मा मदति। सत्रिधा-धर्माजिदानवः धर्मवीरः संग्रामवीरों दानवीर इति । अत्र वीररसे सर्वैः श्लाघनीयगुणैरधिगतो नायको भवति ॥ २१ ॥
वीर रस का स्थायीभाव 'उत्साह है; यह (वीर रस) तीन प्रकार का होता है-धर्मवीर, युद्धवीर और दामवीर । यहाँ (वीर रस का) मायक सभी प्रशंसनीय गुणों से सम्पक रहता है ॥९॥ करुणमा
शोकोत्थः करुणो शेयस्तत्र भूपातरोदने । . वैवर्ण्यमोहनिर्वेदप्रलापाशूणि कीतयेत् ॥ २२॥
करुणो नाम रस शोकोस्था शोकात्मको छातभ्यः । तत्र रसे भूपातरोदने वैवर्ण्यमोक निवप्रलापाणि कीर्तयेत् । भूपाती भूमौ मुठन तथा रोदनम् , पैवयं विवर्णमावः, मोहो मौख्यम् , निवेदो विषादः, मलाः प्राष्टं सपनम् , मणि अपातः । करुणरस एले भवन्ति भावार । भतोड रसे प्रवे भावा वर्धन्ते || २२ ।।
सोक से प्रत्यक्ष (अथवा शोक स्थायीभाष पाळे) रस को करुण कहते हैं। इस (कक्ष्य पक्ष) में पृथ्वी पर (पलाद खाकर) गिरना, कम, (मुख का) पीलापन, मूळ, वैराग्य, प्रलाप और अभुषों का वर्णन किया जाता है ॥ २२ ॥ वास्थमाइ
हासमूलः समाख्यातो हास्यनामा रसो बुधैः ।
चेष्टाङ्गवेषकृत्याद्वाच्यो हास्यस्य चोद्भवः ॥२३॥ हास्यनामा रसो उहाँसमूलः समाख्यातः । तस्य हास्यरसल्य सम्भव उत्पत्तिश्चेष्टरअमेषवैकल्यादति ॥ २३॥
'हास्य' का स्थायीभाव है सी; यह (हास्य रस) प्रामः पेटा, RF और बेरजनित विकार से उत्पन होता है ॥ २६