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________________ वचनदूतम् अपने हाथ से ही उसके विरह मलिन मुख को धोकर और चुल्लुओं द्वारा सेव नारंगी एवं अनार आदि फलों का रस पिलाकर उसे प्राश्वस्त करें -- फिर हृदयंगम वचनों द्वारा उनके कुशलतादि के समाचार पूछें । जाकर जल्दी घर पर विभो ! श्राप उसके, यहां से, देखें उसको, मलिन मुख ही श्रापको को दिखेगी पानी लेकर प्रथम उसका ग्रास्य धोना स्वयं ही, पीछे चुल्लू भर कर रसों को पिलाता प्रभो ? तुम, आश्वस्त हो जब इस तरह से विभो ! आप पीछे fâ vama bgunénsai --- करना, करते समय उसकी भावना जान लोगे ||४५ || नाथ ! यहां से आप शीघ्र ही श्वसुरसदन पर जाकर के बिरव्यथित विजयिताजनको अपना दर्शन देकरकेशान्त कीजिये, यह प्रशान्त है, यहीन वह बिलकुल है, जल दिन मीन तुल्य वह तुम बिन हाय ! हाय ! प्रतिब्याकुल है, जाकर धैर्य बंघाश्री उसको, मैं उपाय बतलाती हूं, सुनो सुनो तुम उस उपाय को मैं तुमको समझाती हूं, जाकर पहिले जल लेकरके उसके विरह्मलिन मुख को अपने हाथों से धो देना, फिर चुल्लू भर भर रस को धीरे धीरे उसे पिलाना और पूछना फिर उससे क्षेमकुशल, यों करने से ही होगा प्राश्वासन उसको तुम तो करुणा के श्रव हो दया योग्य है वह प्राणी सुख दायक बाशी कहने में कहो कौनसी हैं हानि ॥ ४५ ॥ उसोच्छ, वातैरधरदशनच्छादनं कृष्णयन्सों, भूपीठस्थामचलनयनां द्रक्ष्यसि त्वां समीक्ष्य । सा स्वत्प्राप्य विविध नियमान् संस्कृतान् विस्मरन्सी, स्वत्पादार्थ करुणविरुतं कुर्यती क्षेप्स्यति स्वाम् ॥४६॥ *s
SR No.090527
Book TitleVachandutam Uttarardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages115
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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