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________________ ॥४४३।। गुतिहि गुत्तउ अइमुत्तउ सामी समवसर णि संपत्तउ ।।५७।। जह राया तह सिरियामाया दिन्नवंति पणमिय पहपाया। अम्ह गुप पटु लिनःदि कुमरवसुयाउ करिजइ॥५८|| तो दिक्खिय पहणा नियहत्यिहि मिलिबउ रायकुमर मुणिसस्थिहिं । छब्वारिसिउवि संजम पालइ पायक भर दूरिहि टालइ ।।५९।। सामि भणइ भूबइ तउं धन्नउ जसु नंदण इणियरि कयपुग्न उ । होस्सइ चरमसरीरी निच्छइ धन्न पुन्न जे लोयणि पिच्छइ ॥६०। मास वरिस सो कझ्या है होही जइया अम्हे बिहु क्यसोही । पहुपासिहि चारित गहेस्सउं मोहपास मूलिहि छिदेस्सउं ॥६१॥ इय चितता जिणववंदिय निय कुमार मुणिवर अभिनंदिय । जणणि जणय नियमंदिरि पत्ता देसण अमीयरसहि संसित्ता ।।६२।। अह वरमालइ बाहिरि पत्त उ थविदसत्थि मुणवर अइमुत्तउ । बाल बहुल खिल्लंता गंठिय रमणकजि हुअओ उकंठिय ।। ६३।। मट्टी तणीय पालि सो बंधइ खलहलंत जलवे गिहि रुंधइ । भरितलाय जिमंडिगह मिल्हइ नाव जेम दंडिहिं करि पिल्लइ ।। ६४।। हउ नावड मुझ चल्लइ नाब इम जलि रमलि करइ सो जाव। वय अणुसारइ मइ उम्पजइ सञ्चिय बत्त जणह नणु गिजइ ।।६५।। थविरमुणिदिहि ताव सुहकीय तब्वयणिहिं खुडयमणि संकिय। लजिय जाब अहोमुह जाओ समबसरणि मुणिसस्थिहि आओ ।।६६।। थिरमणिहि पहु अग्गइ साहिय दगमट्टी य नणु एणि विराहिय । मा हीलइ H४४३ अहमुत्तकुमारं दुद्धरउद्धियसंजमभारं । ६७।। अन्नपाणदाणिहि ससालह अम्ह सीस खुड्डुय परिपालह । इय पहु जाम भणिय ता पृच्छई थविरमुणिदे सुणता अच्छई ।।६८।। भवं भव्य अभव्य कुमारो चरमतणू अचरिमतणुधारो पहु आइसइ भन्द चरमंगी इय सुणित्तु मुणि हुय सुहसंगी ।।६९॥ पहुपइ लग्गिय सुट्ठ खमंतउ पुण पुण विणयभत्ति पणमंत उ ।
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
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