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Kणंजलि जिणवाणी पिञ्जई जरामरण दुह दुरि गमिजइ ।।३२॥ दीणहीण जण करुणा किजद्द पाणीय जाणी नेव हणि
जइ । अलिय अदत्त अवंभ निवारउ अप्पण पलं संसारह तारउ |॥३३॥ घात-इच्चाइ सुणे विण तत्त मुणेविण चि-1 त्तिहि रंजिय कुमरवरी। संपत्तउ नियघरि वृल्लइ अवसरि आवीय जणणीजणयपुरो ॥३४॥ भास-घणबुटुइ वण जिम उल्लसीयउ मह मणु अन्ज धम्मि नणु वसीयउ । बद्धमाण जिणवर वक्खाणीय धम्मवत मई निचल जाणीय ।।३५।। धम्म इक्क परमस्थ मुणिजई अवर सहू अक्रयत्थ गणिज्जइ । जउ चितामणि करियलि कलीयउ तउ कि काच करइ जगि रुलीयउ ।।३६॥ सामिय पासि गहिसु हउं दिक्खा वहु परिपामिसु निश्चल सिक्खा । घरि घरि गोयरसरिय भमेसो चंचलचित्तपयंग दमेसो ।।३७।। तो पियरिहिं पुच्छियउ कुमारो, एवडतई किम मुणिय बियारो । महुर बयणि अइमुत्तउ बुल्लइ पिउ सणेहयुलिहि नहु दुल्लइ ।।३८।। जं मई जाणिय तं नवि जाणिव जं जाणिय तं पुण न वियाणिय । एरिस असमंजस तब्भामिय निसुणिय माइपियर उल्लासिय ।।३९।। वच्छ कहं एरिस तउं जंप तो अइमुत्त उ बोलइ तं पइ । एय दत्त परमत्थ महंत उ तुम्हि बुज्झउ मई पयडिज्जंतउ ॥४०।। जउ जायउ तउ निच्छई मरई पुनपावसस्थिहि अणुसरई । तं न मुणिज्जइ जं पुण किणिरत्रणि जीव मरेस्सइ परि बाहिरि बणि ।।४।। नवि बुज्झउं कुणसङ जिउ गच्छद् नरयमज्झि तिहिं दुक्विय अच्छइ । जाणउं पुण सो वेदिय कम्मिहिं जाइ सही संकिण्ण अधम्मिहि ॥४२।। धाततो अक्खइ राया मिल्लिय माया जाया संजलि त लहु य | कह चरण चरेसी कट्ट करेसी खुह पिवास दुह अइबहुय ४३॥ भास-तुह पउमपत्तयुकुमालदेह लापनपुन नणु सुक्ख गेह । खग्गधारतिक्खा पुण दिक्खा कह मग्गिसि घरि
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