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उपदेश
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इय करह हरइ मुणिवरहचित ||१९|| तुम्हे पहु निवसह कत्थ ठामि पुरनयरदेसि आरामिगामि । पुरमज्झि भमहु कुण कारणेण तो अक्खिय गोयममुणिवरेण ॥ २०॥ घात भो भिक्खाकारणि छट्टहपारणि हउं भमामि पुरि कुमरवर | सिरिवीरवासिहि नणु वणवासिहि बासमज्झि अच्छइ पवर | २१|| भास- इय गुरुवयण सुणेवि कुमारो सिरिअहमुत कहर जगसारो । सामीय मज्ज्ञघरिहि पधारउ सुकयवल्लि वणराइ वधार ||२२|| आवंतर नियनत्रण निरखीय सुगुरुत्थि जणणी मणि हरखिय । पुन्नवंत अप्पणपरं मनः कुमरतणा गुण वयणिहि यन्न ||२३|| तक्खणि संमुह आfar अंबा गुरुदंसणि पुलइय अविलंबा । पयजोहारिय मोयग अप्पर अप्पण पुनवंतरि थप्पड ||२४|| चित्तवित्तसुat मुणेवि परिगाह मुणिपत्तधरे विण । तो अइमुत्तकुमर मणि तुट्टओ मज्झ मणोरह फलियगरि ||२५|| महुवाणि अह नंदण भासइ जणणी जणयह मण उल्लास । सामि कह तुम्हि किहि जाएसहु वीरवासि आबहु आएसह ||२६|| गोयमगहर वणिहि पहुत मणहरकुमरिहि सो संजुत्तउ । स्वकंतिरवि जिम दिग्यंत उग्गपरीसहरिज जिप्पतर ||२७|| सामिय कुमर पिक्खि समुवागय पुच्छर बच्छ सच्छमइ सागव । देसणअमियरसिंहि सिनेई भवदुदाहरु परिव चेई ||२८|| इहु असारसंसार गणिइ श्रम्मसार नरजम्मि सुणिजइ । देउलसिरि जिम धयवड अंचल धणजुब्वणपरिपण सह चंचल ||२९|| जररक्खसि आवइ धावंती छलइ सवणजण इत्थ न भंती । तसु जो अप्प न रखखइ मुक्खो अंतकाल सो होइ विलक्खो ||३०|| आहिवाहि जा तणु न विवाहइ सोगसंग जा अंग न गाहइ । इंदियसतिहाणि नहु गच्छर जाव पिंडवल पयडज अच्छइ ||३१|| ताव धम्म आयरिहिं करिजइ जीवियजम्मतणउ फल लिजइ । सथ
सप्ततिका.
॥४४०॥