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A कथ व्व स पविट्ठो ।।३३।। चितइ सोहम्मिदो सामत्थं कत्थ एरिसमिमस्स । जिणजिणनायगचेइयनिस्साए हियस्स चम
रस्स ।।३४।। न हु सप्पं पइ पसरइ नउलो नलि विणा इहिं जडियं । मुंजो न मेहवायं विणा बहइ नणु ससारत्तं ।।३५।। सच्चोऽवि एस महिमा हिमं मृतुल्लप्स वीरनाहस्स । जं मझुवरि समेओ उल्टुं सोहम्मकप्पम्मि ।।३६।। तो ओहिणा जिणेसरमा भोइय अप्पयं स निदेइ । अहहू अक जमण जायारायरणं धुबं लग्गं ।।३७।। साहम्मियसम्माणवाणे तन्नि
गहो मए विहिओ। अरिहंतःसा पाया जापा में मंगलस एवं चितित्तु मणे सको वाणुमगमागम्म । लह ।।३९१॥
संहरि बजं च उरंगलपहमसंपत्तं ।।३९।। निग्गच्छसु भो चमरा मुक्कोसि जिणेसवीरस रणेण । भयमस्थि ममाहिती न हु नणु तुह लुल्ल धम्मस्स ।।४०।। इय से सकेणं तत्तो निकलिय तस्स मिलिओ सो । दोवि सठाण पत्ता बंदिय सिरिवीरजिणपाए ।। ४१।। चमरिंदत्तं पत्तं विफलं जायं ग्खु हीणसत्तिस्स । अन्माणकटुवसओ भमिही संसारमवि घोरं ।।४२॥
जइ पुण कट्टेण विणाऽबि हुज धम्मो जिणस्स तेण कओ । तो तय किरियाए साफल नहा किंचि ।।४।। एवं पर Tणचरियं मुणित्तु अन्नाणकट्ठणुट्ठाणं । दूरेण बजिबच सीहोयत्रमरिहप हे ।।४४।। ।। इति पूरणाख्यानम् ।।
अथाष्टमदव्युदासोपरि काव्यद्वयमाह
न जाइगध्यं हिययम्मि कुज्जा, कुलाभिमाणं पुण नो वहिज्जा। एवं नवं इस्सरियं अउरत्रं, लधु सुबुद्धी न धरिज्ज गन्वं ।।६४॥ अहं खु लोए बलवं तबस्सी, सुयाहिओ वा अहयं जसंसी।