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सप्तनिका
उपदेश-IX| कमेण संवडए बालो ।।५।। सह साहुणीहिं पत्तो स अन्नया वीरनाहन मणत्थं । पूच्छाइ य कालसंदीगो य मह मरणमीस
कयो ।।।। अक्खइ पहू इमाओ सच्चइसिसुणो गमित्तु तप्पासे । भासइ रे तुममसि मज्झ घायगो इय हणइ पाए ॥७॥
संपत्ते तारुण्णे हरित्तु परिवायगेण सिक्वविओ। विजाउ रोहिणीए स पञ्चवारं हओ तीए ॥८छट्टम्मि भबे छम्मासाऊ र सो रोहणि स सिज्झति । नेच्छई भवि सनमए तं साहेउं समाढत्तो ।।१।। चियगाइ सब खिविउ ते पजालिन तो तदुरि
च । पत्थरिय अल्लचम्म वामंगटेण जलणहि ॥१०॥ तम्मेवं कुणमाणे कालयसंदीवगो समेच तया । पक्खिवह इंधMणाई सत्तदिणेहि गएहि तओ ।।११।। सयमन दबयाह पसन्नयाऽहं करेहि मा विग्धं । सिद्धा एयम्स धुबं कत्थंगे
संविसामि भण ॥१२॥ तेण णिलाई दसियमेत्याविट्ठा विलं अभू तत्थ । नेतं कयमीई नद्राए तो तिनेत्तक्खा ।।१३।। धस्मिय अणेण समणी तनो तेणं हओ य पेढालो । ततो मद्दभिहाणो पसिओ भवण मज्झम्मि ।।१४।। अह मारणि
कताणं मुणिउं सो कालदीवगो नट्ठो । उड्डाहो तमणुगओ विउवियं तेण तिपुर महो ॥१५॥ तदृद्धं तेण खणा पायाले 6 नट्टओ वि सो हणिओ । अह विजचकाट्टी संजाओ सञ्चई भुवणे ।।१६।। वंदिन तित्थनाहे तिसंझमेसो पकुवई नढें।
रमइ तो सक्केणं महेसरक्लो ति नाम कयं ।।१७।। धिज्जाइजाइरोसावेसाओ ताण कन्नकाओ सो । विद्धंसह भूवाणं रमणीओ रमह सिच्छाए ।।१८।। सीसजुयमस्स जायं नंदी नंदीसरो य सुपसिद्धं । पुष्फगरिमाणमेसो आरुहिउंचरइ सव्वत्थ ।।१९।। अह उज्जेणिपुरीए स चंडपज्जोयरायरमणीओ। अंतेउरम्मि धंसइ सो सिवदेवि विणा सव्वा ।।२०।। तो पजोओ चिप्तइ दुट्ठो खयरो कह खु हतब्बो । अंतेउरीउ सव्वा पाण विडंबिया अहहा ।।२१।। तत्थेवासी वेसा उमा य नामेण