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उपदेश - लीन, इटेप्पर सुप्पयंसरिसकन्न । अरुणग्गिनंयण विकरालवेस उम्मडमुंह भिउडी कविलकेस ||२५|| चूलीय-सन्निह फुंकनास, घोडयपुच्छोनम कुच तास । कुसिदंत सत्ततालुच्चदेह, गिरिकंदरसममुह दुक्खेगेह ॥२६॥ - दुइकर - जंसु पत्र मिलसमाण, लोढी किरि अंगुलिसेणि जाण । अइउंडंखड्ड पिट्टप्पएस, दुइपाय जासु फव्वयविसेस ॥२७ ।। - कविडय उदिरतणी माल, गलि पहिरी जेण महाकराल ! कुंडलकियकन्निहि नउल जेणि, फणहरगणि बद्धीय जासु २ त्रिणि ॥२८॥ इय रमखसख्य करेवि देव, बीहावइ सावय कामदेव । रे बिट्ट टु निग्र्गुण अणज्ज, जइ पोसह -मिल्हिसि नहीय अ । तर कवि यह सन एह ह घंटे खंड हवं करिसु देह । निसुमंतओ इय तवयण दुट्टू, न चलई नियामह सो विसिद्ध ॥ ३० ॥ न हु. मेरुमहीघर चलइ ठाण, न हु चुकई अरजुनतगंउ बजाय न मिल्हर जलमहि जेम, नंवि मुचइ धम्मिय झाण तेम ||३१|| करवालि करी तिणि किद्ध - खंड, उवसग्ग सहइ ते अपयं । यण अहियासइ चित्तसुद्धि, निबल आणेविण धम्मबुद्धिः ||३२|| घात- भूमंडल निर्व- डियं देविहिं विनडिय कामदेव साहसपबेरी । न गण नणु वेयण छेयण भेयण पुण उट्टिय सुझाणपरों ||३३|| हिव-जाणिय देविहि ओहिनाणि, अज वि सो वट्टइ धम्मझाणि । ता किज पुणरवि को उवाउ, जह भजन सावये । ३४॥ अंजणपश्वय किरि मुप्तिमंत, गलगज करतउ अहमहंत । सुपयंड सुडदंडिहि कराल, दतूसल मूसलेस विसाल ३५॥ इय- हस्थिरूव किरि सुर कहेइ, हियउड़ मच्छर आइघण बहेंइ । जइ छसि नहु त पचकोण, सामाइय पोसह अम्मज्ञान २३६॥ तो संपद सुंडादंडअग्गि, उल्लाविय वैगिहि गयणमगिः। श्रियंसलि
॥२८६।१४
SSP
सप्ततिका.
१२८६।