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________________ सप्तनिका पदेश- विस्समसेसं पस्सई तम्मयमेवेस रागरत्तमणो । न लहइ रई मणारा निजलदेसम्मि जह मीणो ॥२६॥ Ko मुक्का कुलमाया जाया लज्जा सुदूरमेयस्स | बम्मह वाही बुट्टि गओ हुयासुब्ध वणगहणे ॥२७॥ नट्ठो विवेगदीवो जीवो जेणेस पावतमपूरे । निवडइ नह धरणीयले रयणीए वा विदेसम्मि ।।२८।। तत्तो स इलापुत्तो तत्तो कामग्गिणा उदग्गेण । चंदणरसोवलेवोवमं पइन्न इममकासी ॥२९॥ जइ एयं नडदुहियं अहं विवाहित्तु अप्पगं दुहियं । सहियं न करेमि अहा दहेमि तो देहमग्गीए ॥३०॥ १९२॥ तो मित्तेहि स नोओ नीओ गेहे सिसुब्ब कडेग । कहमवि दुक्खेणेसो संचिटुइ गमइ दीहाई ॥३१!! तो जणएणाइट्ठा इट्टा एयरस निययतणअस्स । चिताउरुन्द दीस होणमणी पाहम गियो ।।१२॥ वक्कुत्तिजुत्तिओ तम्मणस्स भावं सुगढमवि मुणिउं । विच्छायबयणसोहेहि गरुअमोहेहि मित्तुवरि ॥३३॥ तेहिं तस्स सरूवे कहिएऽवहिएण तो इमो पिउणा। उल्लवियं कह भवया पारद्ध धम्मिय विरुद्धं ॥३४॥ किमु इन्भकुलप्पन्ना कन्ना लायन्नवगुणपुत्रा । न ह संति इत्थ लोए जं एस असग्गहो गहिओं ॥३५॥ आरुहिउं धवलहरं मड्डाए को पडेइ खड्डाए । पिच्चा पोयसर को पियई कंजियं कुहियं ॥३६॥ जइ संपञ्जइ हत्थी को चल्लाइ रासहम्मि ता चडिओ। जूत्तातं जाणसु अट्ठाणे मा धिई धरसु ॥३७॥ तदसम्गहमाइनिय माया जाया य दुक्खभरविन्ना । अनीणा तप्पासं सूयमेव भणिउमाढत्ता ॥३८॥ रे वच्छ सच्छमइणा मयणाउरभावमागएणावि । न हूँ लज्जामजायाहरं खु कम्मंवि कायव्वं ॥३९॥
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
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