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________________ उपदेश 1183011 रक्षाकृते भस्मकृते दहेत् । अय च चिन्तामणि काकोड्डायनार्थ का संग्रहार्थं वा गमयेन्निवसियेदिति तात्पर्यार्थः ||२८| अर्थतदर्थाविर्भावकं प्रीणितानेकश्रावकं श्रीइलापुत्रचरित्र मुदा ह्रियते - || इलापुत्र-कथा !! विनसव्वविरई जई पमाई हविज्ज जो भाई । सो परभवम्मि सोअइ इत्थ इलापुत्त आहरणं ॥१॥ इत्थेव भरहवासे वसंतपुरनामविज्जनयरम्मि । तत्थासि अग्गिसम्मो विष्पो सप्पोव्व रोसिलो ||२|| थविराणं थविराणं नाणाइगुणाण सो य पासम्मि । अंगीकरेइ दिक्त्रं सिवखं पुण लहइ सुत्तस्स ॥३॥ तब्भारियावि तने भारिया सारिया व महरझुणी । जइणीण पायमूले जाया जणी गुणुज्जइणी || ४ || वह जह तम्मुहकमलं कमलं व पलोयए स रागवसा । अणूसरि (हवि ) याई पुत्रं तह वह सो सरइ सुरबाई ॥५॥ सा साहुषीण मज्झे चिट्ठतीवि हृ सकट्ठनिट्ठामु । करचरणे पक्खालई टालइ मलमंगसंलग्गं ॥६॥ उज्झइ नहु जाइमयं तज्जाया साहूणी खु सपमाया । तमणालोइय दुकयं ने दोवि य मरणसमयम्मि अणसणमणपालित्ता वेमाणियनिज्जरत्तमावन्ना । तत्तो चवित्तु इत्थेव पसिद्धे भारहे वासे ||८|| नयरम्मि इलावदमनामे अभिरामसी अलारामे । धणकोडीहि पगन्भो इब्भो नामेण वरसिट्ठी ॥ ९ ॥ गुणधारिणी सुरूवा दइया तस्सत्थि धारिणी नाम । ताणं पुण नत्थि सुओ सुबोध्द जो बंसवणसंडे ॥११० ।। तत्थेव इलादेवी नाम सुरी सत्यभावपत्भारा । सपमोया पुरलोया तं बहुमन्नंति अवंति ॥ ११ ॥ सप्तति 1183
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
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