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________________ ॥१६॥ तह चेव वट्टियत्वं छक्काय जियाण न हु जहा बाहा। पव्वइयाणमिमेसिं चरित्तलेसोऽवि न हु दिदो ॥५॥ * मुहर्णतगपडिलेहं कुणमाणो अविहिणा पुणो अञ्ज । सो चोइओ मए भो साहु कहं कुणसि पडिलेहं ।।६।। फडफडसद्देण पड़े विराहणं वाउणो न हु गणेसि । कहमणुवउत्तचित्तो परमस्थपसाहगो होसि? ।।६।। & एरिसपमायट्राणा जेसु कहं ते हवति मणु समणा । भद्दमुह भूणनुल्ला एए छक्क यनिम्महणा ॥६॥ अहवा एएहितो भूणोऽवि हु सग्गुणो न जस्सस्थि । सुहुमोऽवि नियमभगो एए पुण सव्वहा बज्झा ।।३।। 10 क्त्तववे हिँ इमेहि दिडेहि नियमओ सुदिट्ठीए । सरमाणो जिणवयणं को एसि वंदणे कुजा ।।६।। अन्नं च गमो नण झारेसम्म विपत्ताहेर । सावयधम्मरयाणवि शिढिलत्तं चरणकरणेसु ॥६५।। आहिंडामो जेणं भवाडवीए अईववियडाए । इय अणुसिट्ठोऽवि ह नायलेण विविहाहि जुत्तीहि ।।६६।। समई पलवेइ इम गंतब्यमवरसमम्हमेएहि । गहियव्वा पन्दजा निरवजा तह मए एत्थ ॥६७॥ तुममलवेसि जं पुण तं काउं कोऽवि किर न सके । ता मुयस् मह करं तुह न बलकारो करेयवो ॥६॥ एए चयति दूरं मह गतवं ईमेह खलु सद्धिं । तो नायलेण भणियं न पच्छमाणरस तुह भई ।।६९।। अहयं पुण हियमहियं कहे नि तुह जं हियं तमायरसु । दुक्खाकरोमि नाहं को करस करिजा किर बयणं ।।७।। न टिओ तस्सांगाओ विविहोबा एहिं वारिओऽवि हु सो । चंदणमुज्झिय कुहियं पयाइ नणु मच्छिया ठाणं ॥७१ गोयम स मंदभग्गो पब्वइओ साहुपासपासम्म । लग्गा य पंचमासा बच्चंताणं पहे ताणं ।।७२।। ॥१६१।
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
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