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________________ ॥ ४ ॥ नीष्म नवाचेति यावज्ञणितं तावत् प्रतोट्यामर्धप्रविष्टशुनः दूरात् हामिहामिति नणंत्युत्तम्यौ ॥ ॥ मष्टा दौवारिकाय, किंचिजटिपत्ता स्वल्पवेझया पुनरागत्योपविष्टा, नीष्म नवाचेत्यकययत् कयकः ए ॥ तावद् ददृशे महानसासन्नां मार्जारी, दूगत् गिरि निरि वदंत्युदस्यात्, अमप्यत् सूपकारिकायै, पुनम्पाविदत् ॥१०॥ जीष्म उवाचेति अवोचत्पुस्तकवाचकः, अत्रांतरे बुटितो वत्सः, नत्यिता बुबु इति जपंती कुछा वत्सपासाय.न्यविदात् पुनः॥११॥जीष्म नवाचेति यावदूचे वाचकः, तावन् काकाकाका इति कोलाहलपग पराङ्मुख्यनून, अमव्यत् कर्मकरीत्यः, एवं याचकागमनादिवपि पुन पुनम्त्यानादि एवमनिकांनः प्रहरो गनः पुस्तकवाचक॥१॥ भटनामा कया बांचनार नटजीए कयु के जीम नुवाच एटनामां मंत्रीमा अग्ध मवश कम्खा कुनगने जाइन | दृस्यीज ते हाम हाम करनी ननी थइ ।। ।। पी शरपाल प्रत्ये क्रोध करीन नया कंक क्वीने तुलज | पाछी आवी चेत्री. पट्टे बळी जटजीए कया शिस करी के जीम उवाच ॥ ॥ वळी पटनामा मामतीए साम। नजदीक कोमामाने जोड़, नी दायीज बीली करनी उनी यह; नश ग्स कम्नारी प्रत्ये क्रोधायमान था, अन पाछी प्राचीन की।।१०॥ त्यारे वळी चटजीए कथा शरु करी के नीम नवाच 8| पटनामा बाउ बुटी गया, ने जोड़ करनी ननी, अन गोवाल प्रत्ये क्रोध करीने पानी आवी केली ॥ ११ ॥ की चटजीए कहुंके जीम वाच' एट्लामा ता ते गोमनी का का का कर एवा कोलाहान्न करनी यकी पगह मुखी प इ. अने दासीओ प्रत्य ऋषि कावा लागी. एवीरीन याचकना श्रागमन आदिक वाचन पण वारंवार उनी अने एवीर त एक पहार नोकळी गो. नयी पुस्तक वाचनार जटनी नो घर सीधावी गया ।। १२॥ श्री उपदेशरत्नाकर
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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