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________________ ___ पापबुद्धिनृपस्य च युवधादिरूपापापादेव राज्यादिसका श्रेयः समाहितप्राप्तिरितिवादिनो | धर्मषिणः सुबुद्धिमंत्रिणा कामघट दिव्यज्ञकुटसवापश्वापहारिचामरकन्यात्रययाणिग्रह| पदिव्यपढ्यंकश्वेतरक्तकात्रीरकंवाघ्यराज्यादिमद्यसुधर्मफलप्राप्तिदर्शनेन प्रतियोधः ॥ ६ ॥ पूर्वनवे किंचिहिराधितधर्मतया धर्म मृढस्य च मेतार्यादः सुरः संकटपातनादिन्तिः, | कमनस्य चापहासादिना. कुंजकारटट्टिदर्शनास्तिग्रहवता निधानप्राप्न्या. पूर्व व्युग्राहितस्य || च भृगुपुरादितपुत्रध्यस्य साधुपात्राऽहागचाग्दर्शनजजानिस्मगोन प्रतियोधश्च निदर्श| नीयः ।। 2g ॥ . वळी पापबुद्धि राजा के जे युद्ध नया वध आदिकम्प पापज गज्यत्रादिक सकन कल्याण | तया इन्जिन प्राप्ति थाय छे. एम कहनागे हता, नया धमना इंप करनाग हता. तन मुबुद्धि मंत्रिम धर्मना | तुम्न फानी माशि देखावा मप कामघट, देवनाइ नाकमी. सर्व उपद्रवने हग्नार चामर, नाग कन्याओनु । पाणिग्रहण, देवनाइ पलंग, सफेद नया साल कणग्नी वे कांकमीओ नया गज्य आदिकनो वान बतान प्रनिवाध आपझो ३ ॥ ६ ॥ पूर्व जत्रमा घर्मनी कंक विगधना करवायी धर्ममां मूढ़ एवा मनार्य आदिकना दवाग संकटमा पामवा आदिकयी पतिवाधना , कळमन हांसी आदिकी पनि वाघना , कुंजानी दालने जावाना अनिग्रहवाळाने निधाननी मामियी पनिंबाभ्यां . पहेलथी जमावड़ा एवा भृगपुगहिनना बने पुत्रीने साधना पात्र, आहार तथा प्राचार देखामीन जानिम्मराण उत्पन्न कग ने पनिवाला , पम जापत्र ॥ ॥ श्री उपदेशरत्नाकर
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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