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________________ זופיון केवा गुरु योग्य विवेचन या गुरु योग्य ने त्रिप या प्रकार गुरु उपर यकीच मर गुरु अन श्रावक बनी योग्यतानुं स्वप ते उपर चंपा केया, अ आपणोना दर्शन जिनेश्वर जयवंत कलाएक सावध कर्मोनुं स्वमप गुस्तुं स्वरूप .... कुन वर्णन अंगारक आचारनी संबंध चतुर्दश तरंग- पंचदश तरंग -- १०७ वीजी यवराजपिन । कथा 905 .११० 999 मोर, कोयल, हंस, पॉप अने कामको ने जातना पक्की ओना दांत... मोर पीना उपर मंगु आचार्यनी कया ११२ ም चार प्रकारना आप चार मकारना थाकोनुं स्वरूप ते प्रसंगे वरदत वना दासीपुत्रनी कथा धर्मनी शुद्धि उपर विवेचन सामान्य जीवोना धर्मनेशन इन चार प्रकार पोमश तरंग- काल, कया गृहपति अमे राजाना करयाना चार दृष्टांने गुरुओना चार प्रकार .... ११० 203 ना .१११ १२४ ए ....?ag १३४ श्री उपदेशरत्नाकर.
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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