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रत्ननेने याचा साधु श्रावको सामान्य जीवांना चार प्रकार ते उपर श्री आर्य महागिरि मृग्नि संबंध रत्नने साबुना चार प्रकार
गुरू शिष्य अनं श्रावकांना वचन तया विनय
वगैरे क्रियाओची चार प्रकार
प्रथम गुरूना चार प्रकार...
अने
गुरू तथा श्रावकनी योग्यता तथा योग्यतानुं
स्वरूप
ते उपर सर्प, चोर, उग, वणिक, वैध्यागाय, नट. गाय, मित्र, बंधु, पिता, माता अप नाट
....
सप्तदश तरंग —
१३७ ते ऊपर सहदेवनी क्या
....१३५
१५२
रत्नने दृष्टांत श्रावकांना चार प्रकार
अष्टादश तरंग —
१४
या प्रकार पर श्री मनो
१५४
१५०
१४ ग्रहस्य
नवदश तरंग—
सिग्ना संधान श्री कालकरिना
शिष्य कया
कोनाचार प्रकार
नटना गायना दांतनुं विवेचन
मित्रांत उपर बप्पन
कथा
दांत उपर श्री कुमारपाल राजा ने म चंद्र गुमनो प्रबंध
पर अंगार मर्दाचार्यनी का
289
289
४४
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१६३
१६५
१८५
श्री उपदेशरत्नाकर.