________________
॥ २५॥
तब्जार्या तरूणी, सा नर्मदाऽपरतटवा सिनि कस्मिंश्चित्पुसि रता प्रत्यहं निशिघटेन नर्मदामुत्तीर्य याति ॥ ५॥
ज“श्चित्तं रकंती मायाविनी दिवा काकेन्यो विन्नेमीतिवति ॥ ३० ॥ ततो बद्धिं कुर्वन्त्यास्तस्या राय गत्रान् रक्षपासान् दत्ते ॥ ३१ ॥
पारकेनाऽमुकमाह्वयेत्युक्ता च वक्ति, नाऽहंमनुष्येण समं वक्तुं वेग्नि, ततः स स्त्रयमेवाह्वयति ॥ ३५॥ | नत्रैकेन छात्रेणाऽचिंति, नबस्वेतदार्जक्शकणं, यनः ॥ ३३ ॥
ननी खी जुबान हनी, अन ने नर्मदान मामे किनारे बसता एत्रा कोडक पुम्पपर आसक्त हनी. न। हमेशां गत्रिए घमाने आधार नर्मदा नदी उतरीन जनी हनी ।। शए।
पानाना मनीग्न मन गम्बनी थकी ने कपटी वी नन एम कहती द्वनी के. दिवस पश हं कागमाथी म ॥३०॥
अन नयी शिदान करनी चलाए नलीनी रक्षा माट ने पाठक निशानीभान चाकी मारे गग्वनी हता ॥१॥
वळी न पाठक व्यारे नानि कह के, नुं अक मागमन बाबाव, न्यारे ने कहती के. मन मनुष्य साथ बोस कानु आवतुं नयी; पछी ते पाठक पानिज नेने बोलावतो ॥ ३३ ॥
एका न्यो एक निशाळी विचाय क. आ कं: नागीनी सरजनान सकण नयी, कमकं ॥३॥
श्री उपदेशरत्नाकर