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________________ ॥१ ॥ प्रणितं च नानाव्यंजनगुणोपेतं जोजनं, परं सुंदरमपि न बहुमतं किमपि तच्चिते, उक्तवांश्च ॥ ६ ॥ किं नुज्यते हितीयश्रिया यन्न राद्धं, तदानय किमपि तळेश्मनः, शाकं, ततः प्रथमश्रीः सपत्नी शाकमयाचिष्ट ॥ ७ ॥ । तयोक्तं नाच राद्धं कुतः शाकं, आगत्योक्तं तनवराय, पुनस्पतं तेन, किंचिछरिताद्यपि मार्गय ॥ ॥ | पुनर्गत्वाऽमार्गयत्प्रथमश्रीः, कर्मकरेन्यो दत्तमित्युचरितमपि नास्तीनि प्रत्युवाच सपत्नी ॥ ए ॥ बळी नाना प्रकारना शाकवा- मुंदर जोजन नणीप नैयार कयु, परंतु ने जनम जोजन पाग नेना 18] मनन कं पण मन्यु नहीं, अने नेयी ने कहवा झाग्यो के ॥६॥ हितीयश्री जे गं युं नथी, ते शंखाई शकाय? मादे नए न घेरची कडक शाकनाजी झा? पड़ी प्रथमश्रीय (पोनानी) शोक पासे जद शाक माग्यं ।। ७॥ तीये कयु में आज गत्यु नयी, माटे शाक क्यायी होय? पछी ने प्रथमश्रीय पाछा आवीन ते हकी-|| 8| कत काटवाळने कही; न्यारे फरीन कोटवाळे कडं के, जे का बयु घटयु होय ने मागी झाव? ॥७॥ न्यारे बळी प्रयमश्रीए न्यां जहन माग्युन्यारे चर्छ। शोके एवा जवाब आप्यो के, जे कई वध्यु || हतं, पण चाकगन देई दी), माटते पण नयी । श्री उपदेशरत्नाकर
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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