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________________ ।। १५ ।। तस्करस्तु मंत्रीदोर्न क्वाऽप्यऽभूद् दृग्गोचरः ॥ २५ ॥ areer जनान् मुख्यनव्यामप्राप्तायां अजयः प्रोचे ॥ २६ ॥ बसंतपुरे जीर्णश्रेष्टी निःस्वः, तदंगजा विवाहमामय्य योगाद् वृहत्यनृतु, जनेऽपि वृहत्कुमारीति नाम प्रासिध्यत् ॥ 29 ॥ सावरा कामदेवमपूजयत् अन्यदा निशि पुप्पार्थ मलये प्रविष्टा मालिकेन उक्का च चौरि किं ते कुर्वे ॥ २० ॥ साऽवोचत् कुमार्यस्मि मां कोऽप्युछति न तेन पुष्पाण्यादाय काममचमि ॥२॥ चोर तो मंत्रीनी नजरे क्योंये पण पड्यो नई। ॥ २५ ॥ एक दिसे को देवमंदिरमां (नृत्य वखते) मुख्य नदी हजु आत्री नहोनी. तेलामा पेटले रंगरूपाने बेला सोकाने अजयकुमार के ।। २६ । वनपुर नामना नगम्यां जीऐशन नाम एक निर्धन मनुष्य नसतो हनो तेनी एक पुत्री, युग्मनी सामयं । नही मलवा ल य नेते लोकमां ने 'बृहत्कुमारी ना नामर्थी प्रसिद्ध पह ॥ २७ ॥ ामदेवन पुजवा झागी एक दिवसे त्रि पुष्पा करूँ ? || २० || गांग, न्यां पालीए नेशीने कचरा त्यारे ने कह के हुं कुमारी बुं, मन कोड़ पूनुं हुं ॥ २७ ॥ पण परां नये पांडे पुष्प लेने हुं कामदेवने श्री उपदेशरत्नाकर.
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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