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________________ श्री श्रेणिक संबंधश्चायं --- राजगृहनगरे श्रीश्रेणिक: मापतिः, चेल्लमा गङ्गी ॥१॥ अन्यदा मेदिनीशक्रश्चेला या एक स्तंजधवलगृह निवासमनोरथम जिज्ञपद जयकुमारं ॥ १३ ॥ aarsarमंत्री तास्तंनार्यमटव्यां नमन् स्तंजोचितं सुन्नकणं तरमेकमा कीनू ॥ १४ ॥ नायमधिष्ठायक: नागानकरियोत्पत्तिक्या धियाऽवधार्य तदविशयक माग डुमुपवात्रयमनोत् ॥ १९ ॥ "तुष्टः सुराः समाः तिष्टवसो ममाश्रमः सर्वर्तुकवनाइनुतमेकस्तंनं रत्नमयं सौधं विधाये ॥ १६ ॥ श्री श्री एक राजा नीचे जब राजगृह नामना नगरमांक नाम गजाननी च हा नाम राणी हनी ॥ १२ ॥ एक दिवसेनेला गणीने एक जवाळा न गृहमा रहेवानो मनोग्य थयो, अनेने वान गजाए, अजयकुमारने जात्री ॥ १३ ॥ यी अजयकुमार मंत्री वा स्यंजने माटे बनम जमां कांस्यं यक एक उत्तम कणांचा क युं ॥ १४ ॥ आवाया तेना अधिक बिना दोनो एवं उम्यानिकी बुद्धियी जातीने तेना अभिप्रायकने आराधना मात्र उपनाम कर्या ॥ १५ ॥ ती मला देवे के मा स्थानने नारे एमज रहेवा दे. हुं तने सर्व ऋतुचा एक जना अजुन रत्नमय महल बनावी आश || १६ || 000000000000000. श्री उपदेशरत्नाकर
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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