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________________ ०० तेन हे जगवन् पृञ्चामि को मे पूर्वनवः ? प्रधाना अपि तदा पाहुः जगवन् प्रसव नृपपूर्वनवः कथ्यतां ॥ २०५ ॥ ततः प्रनुः प्रश्नचूमामणिशास्त्रवनेन तं प्राहः, शणु नूपते, कालिंजराख्यस्य गिरेः शाल मोर्धस्थशाखाबजुजघ्योऽधोमुखो ॥२०६।। जटाकोटिसंस्पृष्टभूतलो, छाहे हे मिताहारी, रागादिरहितः, सायं वर्षशतं घोरं तपस्तत्वायुःप्रांते त्वं राजाऽनूः ॥ २० ॥ यदि न प्रत्ययस्तदा सुन्नटान् प्रेषय, अद्यापि तत्तरोरधःस्था जदा आनायय, इति श्रुत्वा नृपो जटा आनाययत् ॥ २० ॥ मुनींघोऽयं महाज्ञानी कोऽप्याहृत इति प्रशंसां चक्रे च ॥२०॥ भी सपदेशरत्नाकर माटे हे जगवन् ! हुं आपने पूर्बु बु के, मारो पूर्व जव शु हतो? ते वक्ते प्रधानो पण आचार्यनीने ||२|| ka कहवा झाम्या के, हे जगवन् ! आप साहेब कृपा करीने राजानो पुर्व जव कहो ॥२०॥ त्यारे प्राचा र्यजी महाराजे प्रश्नचूमामणि नामना शाखना वळयो तेने कर्जा के हे राजन् ! सनिळो. काशिंजर नामना || The] पर्वतमां शान वृजनी उंची माळीमा जेणे घे हाथ बांधी नीचे मुख करे , एवो ॥२०६ ॥ जेनी जाना | जेमा नीचे नूमीपर स्पर्श करी रहेझा एवो, बचे दिवमे मिन जोजन करनारो, राग श्रादिकथी रहित, एवो तुं सवासो वर्ष सुधी घोर तप तपीने वटे आयुः कय थवाथी राजा ययो ॥ १०७ ॥ जो तने | प्रतीति न श्रावती होय, तो त्यां तुं मुन्टोने मोका. तया हजु पण से एक नीचे रहेसी तारी जा मंगाव. ते साजळी राजाए ते जटा मंगावी ॥ २० ॥ तथा प्राचार्यजीनी प्रशंसा करवा साग्यो के, 'प्रा तो कोक महाज्ञानी मुनींद्र ग्रहीं पचार्या ने ॥ २० ॥
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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