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________________ संतस्ते सुचिरं जयंतु सुतरामीम खझानऽप्यमून् ॥ शास्त्रे येऽनुपदं गुणप्रकटनादधुः प्रतिष्टां | कवेः ॥ ये चाऽनुग्रहकाम्ययेव विविधान् देोपान् गृहीत्वायवा । याक्तागपीदमर्थि गुणकृनूयाज्जयश्रीप्रदं ॥ शए । इति श्री तपागडे श्री मुनिसुंदरसूरिविरचिते जयथ्यके श्री उपदेशरत्नाकरे पीठिका "म्पो जगतीतीर्यावतारः ॥ ने संत पुरूपो घणा काळ सुधि जय पामो बळी ने खन पुरूपानी पण हमारी रीत मनुति कर व ने संन | पुरूपा केबा ? तो के, जोए (पगने पगले अग्यवा) शास्त्रना पदे पदे मुणोन प्रगट करीने कविने झोला | आपेत्री छे वही ते स्वज्ञ पुरुषो केवा ? नो के जेओए जाणे कृपानी इच्छायी होय नहीं नेम विविध प्रकाग्ना दापाने ग्रहण करीने (कविने शोना आपली ) एवी रीत कोई पण रीते प्रा शास्त्र (नना) अथिओने गुण करनारूं नया जय अने झक्ष्मी देनार याओ ? ॥ ५ ॥ “एवी रीने श्री तपागच्छमां श्री मुनिसुंदर मूरिए रचला जयश्रीना चिन्हाळा श्री पदशस्नाकर नामना ग्रंयमा पीविकामप जगतीतीर्थावतार जाणवी ॥ श्री उपदेशरत्नाकर. ...०००००००००००००००००००००००००००००००००
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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