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________________ एवं केचन प्रासुकनीरसन्नक्तपानादिमात्रोपजीविनः सुविशुष्प्रकृतयः शुधधर्ममागोपदेशैर्दुग्धघृताशुपमैः सततमुपकुर्वते परान् ॥ ॥ सम्यक्चरणकरणानुष्ठानादिवसकायुपमं प्रसुवते च. श्रीप्रदेशिनृपप्रतिबोधकश्रीकेशिगणधरवत् योग्याश्चैत : यक्-महावतधरा धीरा । नेयमात्रोपजीविनः ॥ सामायिकस्था धर्मोप-दे. शका गुरखो मताः ॥ ७० ॥ यया च धेनोर्दत्तं तृणाद्यपि पुग्धादितया परिणमति, एवमेतेषु दत्तं स्वल्पमप्यनंतफमाय च कढपत ॥ ८१ ॥ श्रीमपत्नदेवप्रयमनवधनसार्थवाहसार्यत्रिहतुश्रीधर्मघोषमूरिप्रभृत्तिवत्, इति धेनुदृष्टांतजावना ॥ ७॥ श्री उपदेशरत्नाकर एवीरीने केझाक गुरुत्रो तानां नया ग्मदिनाना एवा मात्र जात पाए। आदिकयी आजीविका चला वीन शुद्ध प्रकृतिवाळा यया थका. ध अन घी आदिक जेवा शुद्ध धर्ममार्गना उपदेशावर्स करीन परने नपकार करः ॥ ए || नया बालरमा अादिक सरखी जुत्तम चाणकरणनी क्रिया आदिक नम्पन्न करे :(कोनी। |पेठे? तांक ) श्रीपदेशी राजाना प्रनियोधक श्रीकशिगावग्नी फर अन नेवा गुरुओं योग्य : कत्यु के के-- | महावतान धारण करनाग. धैर्यतावाला, नया फक्त निकायीज आजीविका चारनाम, सामायिकमां रहनारा गवा धर्मोपदेशक गुरुओ का ये !। ७० ॥ वळी गायन दीवं तृण आदिक जप दूध आदिकरूप परिणम छ.18 तय एवा उत्तम गुरुओने दीधवं अल्प दान पाग अनंत फल करना शाय ने ॥ १॥ (कोनी फो? तोक) श्रीकपलदेव प्रजुना प्रथम नवबाळा नसार्थवाहना सायमां विहार करनाग श्रीधर्मघोषमृषि प्रादिकनी पं: रावी ते गायना यांननी नावना नागवी ।। ||
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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