SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 335
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥१५॥ पदघटना सुगमेव, नावना चेयं, तयाहि सप्पत्ति, यया सर्पाः खनावादपि क्रूरकर्माणः क्रोधनकप्रकृतयोजीषणाकृतयश्च स्युः, स्फारैः फुकारे पियंतिच बानादोन, खरपेऽप्यपराधे बब्धावकाशास्तजीवितान्यऽप्यऽपहरंति च, तयुक्तं॥२॥ सर्पाणां च खलानां च । चौराणां च विशेषतः ॥ अनिमाया न सिध्यति । तेनेदं वर्तते जगत्, ॥३॥ इति, तया केचन बौकिका ब्रोकोत्तराश्च कुगुरवो रागळेषादिविषविषमाः केवलमैहित कार्थसमर्थनपराः ॥ ४ ॥ सर्वयापि जीवदयादिमूत्रधर्ममर्मपराङ्मुखा बहुविधमंत्रतंत्रयोगप्रयोगमोहनोच्चाटनवशीकरणहोमशातनपातनादिकर्मनिर्माणशीलतया क्रूरकर्माणः ॥ ५ ॥ श्रीउपदेशरत्नाकर आ गायानी पद रचना मुगम न ; न कहे डे; सप्प एटझे जेम सा व नावीज कर कार्यों करनाग, क्रोध युन व नाघाळा तमा जयंकर आऊनिवाळा होय जे; तेमज ने प्रो मोरा फुफामा प्रोयी वामक आदिकाने चीवराव, बळी स्वरूप अपराध होने बने पण ने प्रोना जोधितन पग हरे छ; क के--1॥ मोना, बुरचाओना ना चोरोना अभिप्रायो विशेषे करीने सिद्ध यता नयी, अने नेगीज आ जगन नजी शाके | 18|॥ ॥ इनि, एवी रीते केटनाक लोकिक नया लोकोत्तर कुगुरुश्रो राग ईप आदिक कन्या विषम यता, नया वळ आ प्रोक मंबंधि स्वार्थ साधवामाज नत्पर ययेला ॥४॥ तथा सर्वया प्रकारे जीव दया आदिक मूळवाळा ममयी पराड़ मम्व यया यका, घाणा भकारना मंत्र तंत्रना योग तया प्रयोग, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण होम, शान, नया पानन आदिक कायां कम्बामा तत्पर थयेना होगायी ने ओ कर कमांवाला होय ३॥५॥
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy