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________________ । ॥१३५॥ मिविसाह। ( ४ ) समिई (५)। जावाण (१५) पमिना (१२)य इंदियनिरोहो (५) ॥ पमिलेहण (२५) गुत्तीग्रो (३)। अन्निग्गहा (४) चेव करणंतु ॥ ५ ॥ श्रीसूरिविशेषगुणाः प्रतिरूपत्वादयः, तमुक्तं-पमिरूवो तेअस्सी जुगप्पहा० (१) अपरिस्सावि० (२)॥६॥ अतिशयाः पुनः सार्धयोजनध्यादौ निकम्मरहरवादयः, विद्यामंत्रचूर्णादिप्रयोगजन्मानो वा वशीनूतदेवतादिजनिता वा चमत्कारविशेषा: ॥ ७ ॥बब्धयस्तु कीरास्त्रवादयः कफविनुएमनामर्षोषध्यादयो वधिज्ञानादयश्चेति ॥८॥ अर्थतनाव्यते-यया श्वपाककरंगश्चर्मपरिकर्मोपकरणवर्धादिचाशस्थानतयाऽत्यंतमसारः, तथा पावस्थादयः षट्प्रज्ञकगायाज्योतिषादिरूपसूत्रार्थधारिणस्तथाविधयतिक्रिया विकलाश्चेत्यत्यंतमसाराः ॥ ५ ॥ चार प्रकारनी पिकविशुद्री, पांच प्रकारनी सिमिति, वार जावना, बार पमिमा. पांच दिनोनो निरोध, शाचीस पहिणा, वा गुति तया चार अजिग्रह एवीरीत करणसित्तेरी जाणवी ॥ ॥ प्राचायना विशेष 18| गाणो प्रतिरूप आदिक जाणवा. कई ने के-प्रतिरूप, नेजस्वी, युगप्रधान आदिक ॥ ६॥ अतिशयो पटो अही योजन आनिकमां दुकाळ नया जयने हरवापाणा आदिकरूप. नया पिया, मंत्र तथा चणे आदिकना प्रयोगयी नन्यन्न थपक्षा, अथवा वश थयेला पत्रा देवता आदिके नत्पन्न करना चमत्कार विशेषो जाणा ।। 3 । भियो पटने कीराम्रव श्रादिको, तथा कफ, शुक, मन, आमपं श्रीषधी आदिक नया अवधिज्ञान आनिक जाणवी॥ 1 हवे तेनं विशेष व्याख्यान कहे जे-जेम चांमाझनो करंमीयो विमानो महया नया ने संबंधि नपकरणरूप वाधरी आदिक चर्मना अंशना स्यानपणायें करीने अन्यन सारविमानो तेम पासन्या आदिको पद प्रहक गाया, ज्योतिष आदिकम्प मूत्रार्थन धरनाराने, तथा तेवी रीतनी मात्र क्रिया विनाना होचायी तेश्रो अत्यंत सारबिनाना ॥७॥ श्रीउपदेशरत्नाकर
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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