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________________ ॥ १॥ अशेषतः शांतिमुपाणा । जगत्सु कुर्वत्कृतवल्करिष्यत् ॥ यस्यान्निधानं दधतेऽन्वयित्वं सशांतिनेतान्तिमतार्थसिख्ये ॥ ३ ॥ यः श्यामवर्णोऽपि वशीकरोति ।ध्यातः सतामीप्सितशमझक्ष्मीः ॥ जयाय बाह्यांतरवैरिनेमिः । नेमित्रियोकः सजिनेअनेमिः ॥ ४॥ पावैः सवः पातु वित्तर्ति सप्त छीपांगिनां सप्त जयानि नेत्तुं ॥ यः सप्तशूलायुधमंसगामि-सप्तस्फटाही उत्तनुच्छ्येन ॥ ५ ॥ श्री वर्धमानप्रनुरेष पुष्यात् । प्रवर्धमानाः सुखसंपदोवः ॥ जगत्सु | यस्त्रासयितुं नु विघ्न-मृगान् दधात्यकमिषान्मृगेंद्र ॥ ६ ॥ ने प्रनुनु नाम (त्राणे) जमतामा समस्त प्रकारे उपद्रवोनी शांति कर जे, जेणे शांति काझी , तथा जे शांति करनारूं || 8] ( अने एवी गीत ) ज पोतार्नु सार्थकपा धारण करे छे, ते शांतिनाय पन्नु इच्छित अर्थनी सिद्धि माटे याओ || ॥ ३ ॥ जर्नु ध्यान धरवामां आवे छे, एवा झ्याम कांतिवाला पण जे प्रनु सजनोनी इच्छित मुवनी | (मोक्क मुखनी) पदमीने वश को , तथा जे बाह्य अने अंतरंग शत्रुओनो नाश करनारा , तमज त्रणे सोक जमने नमस्कार करे , ते श्री नेमि जिनेश्वर ( तमाग ) जय माटे याओं ॥ ४ ॥ खना-18 पर रहेला सात फणोवाळा नागढ़ना शरीरना मिषयी साते श्रीपामा रहेला पाणीओना सात जयाने जेदवा माटे जे सात शोचाला हथीयारने धारण करे , ने पार्धनाय पन्नु तपारुं रक्षण करो ॥ ५ ॥ | जगत्नी अंदर रहेनां विघ्नारुपी हरिणोने नाणे त्रास आपवा माटे आंजनना मिषयी जे सिंहने (पोनानी पासे ) धारण करे उ ते श्री वर्धमान मनु तमारी वृद्रि पामती मुख संपदानु पोषण कगे ॥ ६ ॥ श्री नुपदेशरत्नाकर.
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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