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________________ श्री जिनाय नमः उन्हें फ्रेंने उनक ===>>+T-2 256691902 श्री उपदेशरत्नाकर. - NA . 2265 SEX ol “श्री सर्वज्ञाय नमः श्री गुरुभ्यो नमः" जयश्री प्रातितो मोह - रिपोरमल केवलः ॥ यो जगत्कृपया धर्म-मूत्रे तं श्री जिनं स्तुत्रे ॥ १ ॥ नाथः प्रजानां पुरुषार्थदेशनादनिष्ट प्रकरश्च योऽभवत् ॥ तमादिमं भूमिभृतां तयार्दतां । जगद्गुरुं श्रीऋपन प्रतुं स्तुमः॥ २ ॥ | श्री सर्वज्ञमति नमस्कार थाओ, श्री गुरु प्रति नमस्कार याओ, जे (मोकरुपी ) अमीनी प्राप्तिी मोहरूपी शत्रुने जीते थे, तया जे निर्मळ केवल कानवाला ने तथा जो जगतपर कृपा आजीने धर्म उपदर्शनो बे, ने श्री जिनेश्वर प्रजुनी हुं स्तुति करुं हुं ॥ १ ॥ प्रजाना स्वामी तया (धर्म, अर्थ, काम अने मांरूपी ) पुरुषार्थोना उपदेशय दुखने हरनारा, तथा मुम्ब करनारा जे यया के, तेमज जे राजाओंमां तथा तीर्थकरोमा पहेला के, एवा जगनना स्वामी श्री देव प्रभुनी अमो स्तुति करीए बीए ॥ २ ॥
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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