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________________ ||२५|| एम तेयो हृदयमाने है. वळी ते सागरीत समजे से के, "देश काळना व मनुष्य मात्रेने चालता युगना - आशना धर्म प्राप्त याने ते धर्मा प्रतिपानां मनुष्य शंकर जोए ? सेनी स्वाभाविक रीते गांगना याय ने यत्र जोड़ए ने ने गणनामा फलनी कसोटी पण वास्तविक ते स्वीकारवी जोइए, तथापि महत्तानुं । खरे वीज पोनपोताना कर्त्तव्यमाज के संसारना वोहमांची निवृत्तिपरायण एका जीवनने जो कर्त्तव्यमां जो मवामां आवे तो ते जीवन पोतानी ए स्थितिनुं फळ सारीरीते मेळवी शके " आवा विचारने लड़ने शेव वसनजीना ह|मेश गृह ननुं पोनां कर्तव्य का करवाने तम्पर रहे थे, ने मां पोताना जीवननी सार्थकतामान छ. यात्रा उच्च उन्नत उदार कला एक धनाड्य नरनुं जीवन या लोकमां सर्वने अनुकीय छ. तेमनी कृति उपरथी मां ते जीवन के प्रशंसनीय थशे ? ए वानी आपने पूर्ण प्रतीति प्राप्त थाय छे. शत्र वसनजीजाइना जीवननो प्रभाव से जैन कोममां ने आर्य श्रीमंतोमां उज्वल कीर्ति स्तनंरुप छे. ते आदरणी मान्यता हमेश जळवाशे, एमां संजय नथी. आवा योग्य नरनुं संचित जीवन वांचवार्थी अनेक प्रकारना आज थायनेविष्यमा ते वीजाने प्रोत्साहक अने उत्तेजक यह पके के. श्री परमात्मा एवा वीरपुत्र दीर्घायुष्य आपो ने मना निर्मळ पीना जीवनमा सागं मागं काय करवान] प्रेरणा करो एज अमारी नम्र प्रार्थना है : श्री जैन धर्म विद्या प्रसारक वर्ग. ०००००० श्री नृपदेशरत्नाकर.
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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