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________________ सीसोदराइफोमण । नहितं प्रोहहेड गिहिथुणणं ॥ जिणपमिमाकयविकय । - शामाणखडकरणाई ॥३७॥ श्रीकरफास वन्ने । संदेह कसंतरेण धणदाणं ॥ चट्ट. मयसीसगहणं नीचकुलस्सावि दवेणं ॥ २८ ॥ सव्वावजपवत्तण-मुहुतदाणा सव्वक्षोयाणं ॥ सदागिहिवरे वा । स्वजगपागाइकरणाइं ॥शए ॥ जन्नवाश्गुत्तदेवय-पूयणपूयावणामिबत्तं ॥ सम्मत्ताइनिसेहं । तेर्सि मुझेण वादाणं ॥३०॥ श्य बहुहासावजं । जिणपमिकुठं च गरहियं सोए ॥ जे सेवंति कुकम्मं । कनि एवं दिनिछम्मा ॥ ३१ ॥ श्रीसपदेशरत्नाकर. ___ मस्तक फेट आदिक फोमवां, जाटचापा आनन्, ओजन माटे गृहीनी स्तुति करवी, जिन प्रतिमाना क्रयविक्रय करवो, नचाहन, कामणप्रमुम्ब नीच कार्य करयां ॥ २७॥ खोना हायनो म्पर्श करवो, ब्रह्मचर्यमा मंदेह धरचो, व्याने धन आपवं, नीच कुळना फा चाह या शिष्योने द्रव्य पापी ग्रहण करवा ||३| मा पापोमां प्रकृति करवी, सर्व लोकोने मुहूर्त आदिक जोड़ देवां, धर्मशालामां अथवा गृहप्याने घेरे खाना । पकवान आदिक करवां ।। ॥ यक आदिक गोत्रदेवनानी पूजा करवी कराववो आदिक मिथ्यान्चने बीकारवं, सम्यक्त्र आदिकनो निषेध करवी, अपया किमत से सम्यक्त्व आदिक देवें ।। ३० ॥ एकी रीने पणा प्रकारमावध एटो पापवाई कार्य जिनेश्वर प्रनुप निषधेयं, नथा निदेय छ, माटे प्राओकमा जे पाणी कम गवे , नथा। | करे , तेश्रो बरेम्बर धर्म विनाना ॥ ३१ ॥ 14.
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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