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________________ || ६ || st या विशेषमात्मनो गत्यादिकणं जानातीति विशेषज्ञः तथा चाह. - इहोपपत्तिमेम केन कर्मणा । कुतः प्रयातव्यमितो जवादिति ॥ विचारणा यस्य न जायते हृदि । कथं स धर्मप्रणों जविष्यति ॥ एए ॥ अथवा विशेष कालाद्युचिनांगीकारादिलणं. या कामादों हातुमुपादातुं वा युक्तं तदादिस्वरूपमित्यर्थः, तं वेत्ति तथा प्रवर्तते च यः स विशेषः ॥ ६० ॥ प्रदीपपात्रे रजसतर पाइजू गतेन तेनोपानesiजकस्य श्वसुरस्यौदार्यादिपरीकार्य तीनोद रल्यथावादिवधूजन पीपशमनिमि तमाम प्रमाण मौक्तिकमालादिचूोहक कारवश्रेत् ॥ ६१ ॥ अथवा विशेष आत्माना गति आदिक अरूप विशेषने जे जाएं, न विशपक कवाय च। कथं जे के, कया कर्मयी मारी अहीं उत्पत्ति ? तया आज वे गांर क्यों जने ? एवं न विचार जेना हृदय तो नयी ते मनुष्य धर्ममां शीत तत्पर । ए ॥ अथवा विशेष एटले का आदि उचित कार आदिका विशेष अर्थात जे काल आदिम अवा ग्रहण कर युक्त, ते यादिक स्वरूपने जे जाणे बे तथा ते ममा जे म के दीवाना पात्रमा उतावळची पृतां एकां पृथ्वीपर मेला तेलवमे करीने परख आदिवी परीक्षा माटे मघवर्षा दुखावो वानुं कहनारी बहुना पेटनी मोनी तथा वाला आदिका चुनी गेटको करनार शेवनी देने वि.ए विशेषज्ञ काय ।। ६० ।। चोपनारा ससगर्न । उदारता का दूर करा मांटे जाए हो ॥ ६१ ॥ श्री उपदेशरत्नाकर,
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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