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________________ नतोऽवश्यमम्यै दातव्या चागिरिनि ददी चारिं, एवं शेषा अपि दः, ततः सर्वेऽपि चिरकालं मुग्धाऽन्यवहारत्नाजिनो जाताः, योकेच समुझिनः माधुवादः, बनते च प्रनूनमन्यदवि गवाधिकं ॥ ७० ॥ एवं येऽपि विनेयाश्चिंतयंति यदि वयमाचायस्य न किमपि विनयादिकं विधानारस्तत एषोऽवसीदन्नवश्यमपगतासुनविष्यति झोके च कुशिष्या इम इत्यवर्णवादः ॥ ११ ॥ ततो गच्चतरेऽपि न वयमवकाशं अप्स्यामह, अपि चास्माकमेष प्रत्रज्याशिवावतारोपणादिकरणना मदोपकारी, संप्रति च जगति मुत्रनं श्रुतरत्नमुपयन्बन वर्त्तने ।। ॥ ततोऽवश्यमेतस्यविनयादिकमस्मालिः कर्नव्यं, अन्यच्च यद्यम्मदीयविनयादिना साहायकबोन प्रातीचिकानामप्याचार्यन नपकारः ॥३॥ मांट या गायन मारे जरूर चारो दची जाइये, एम विचारी नेणं गायन चारो आप्यो अन एवी ने बीनााए पण आप्या; अने तथी मपळा घणा काळमुधि दृध नोजन करनाग पया; आकामां पण नेमानो | यश फेनायाः अन नयी गाय आदिक बीजं पण नोने या दान मन्युं ।। 60 ॥ एवी गरीने शिघ्या पण, के जया एम विचार के, जो अमो अचार्यनी विनय आदिक का नहीं करीय, नो प्रा प्राचार्य म्बरेंम्बर सीदाइ सीहाने मृत्यु पामशः अने सोकमा पण अपवाद थशे के, आ कुशिष्य थया ।। ७१ ॥ बढी वीजा गच्छमां पण अमोन म्यान नहीं मळे नेमन वळी आ आचार्य अमान दीक्षा, ग्विामाग तथा वन आदिक प्रापवाची प्रमाग मांटा नपकारी बनी हमणा पण जगतमां दुलेन गर्न ज्ञानरत्न अमोन ते आप ॥ २ ॥ माटे अमारे अवश्य नेनो विनय आदिक कम्बो जोश्य बळी अमाग विनय आदिकम्प महायकारी बळबके करीन जो श्रीमाधोने पास प्राचार्यथी नपकार यशे ॥३॥ श्री नपदेशरत्नाकर
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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