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________________ - - मोत्तूण दृई दोस । गुमणाणुवनत्तन्नासियाईए । गिगहा गुणे न जोसो । जोम्गो समयत्यमारस्स ॥ २३ ॥ इदानीं महिषदृष्टांततावना, यया महिषो निपानस्थानमवाप्तः सन् उदकमध्ये नजुदकं मुहुर्मुहुः शृंगान्यां ताम्यन्नवगाहमानश्च सकलमपि कषीकरोनि, ततो न स्वयं पातुं शक्नोति, नापि यूयं ॥ ५ ॥ तकविष्योऽपि यो व्याख्यानप्रबंधावसरेऽकामएव कुषप्रवान्निः कलहविकथादिनिर्वा आत्मन: पेरपां चानुयोगश्रवाणविघातमायने, स महिषसमानः ॥ ५५ ॥ स चैकांतेनाऽयोग्य: नक्तं चसयमवि न पियश महिमो । न य जुदं पिव सोनियं नदयं ॥ विग्गव विकहाहिं नह । अथकपुत्रादि य कुसीमा ॥॥ श्री उपदेशरत्नाकर ____ गुरुप अनुपयागपणायी कहना ह दोपान पण जमीन ज गुणाने ग्रहण कर , ने शिष्य मूत्रार्थना माग्ने योग्य ।। | हवे पामाना हननी जावना कह : जेम पामो जलाशय अन्य प्राप्त थयो नमा रहना पाणनि वारंवार शिंगांयी नगलनो थका नया अंदर अवगाहना करनी थको मघटु जल मे करे के अने नयी पाने पी शकनो नयी. नम पोताना टोलाने पण पीवा देनो नयी ॥५४॥ तेनी परे शिष्य । |पण के ज, व्याख्यान वंचाती वखने विना अवमरज नकामा मवालोथी अथवा शनी विकया आदिकवरी करीने पोनाने अन पग्न अनुयांगना श्रवपना विघात कर , ने शिप्य पामा मरखो छ ।॥ ५५ ॥ अने ने एकाने अयोग्य . का के, पामो पोते पण पाणी पीना नथी, नेम ने मोळी नावीन पोताना टोलांन पाण पीवा देना नयी नम शिष्य पाम विग्रह कयायायी नया निर्थक प्रश्नायी व्याख्यानन माली नाग्वे ५६ ॥
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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