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________________ मूत्रम्-जिन्नाजिन्नजराइसु । होइ जहा इक्कमेव गोखीरं ॥ गुणदोसप्यखत्तिकरं सुहगुरुवयाणं तह जीपसु ॥ ३ ॥ जीर्णाऽजीर्णज्वरयोः, आदिशब्दात् पित्त - प्मादिषु च, यथा एकमेव गोतीरं क्रमात गुणदोषोत्पत्तिकरं नवनि, जीर्णज्वरे पित्तादौ च गुणकर, अनिनवञ्चरे नेमादौ च दोषकर ॥ ३ ॥ तया गोपुग्धयत् माधुर्यादिगुणमुनयझोकहितावहं, सम्यग् धर्मतत्वेकप्ररूपकं सुगुरुवचनं जीवेषु योग्याऽयोग्येषु क्रमात गुणदोषोत्पत्तिकरं स्यात् ॥४॥ जीर्णमिथ्यात्वमोहनीयादिकर्मतया योग्येषु गुणकर, श्रीवर्धमानजिनवचनं श्रीनृत्यादिष्विव, श्रीयावचापुत्रसूरिवचनं सुदर्शनश्रेष्टिशुकपरिव्राजकादिष्विव च ॥ ५ ॥ मूलनो अर्थ:-जीर्ण नया अजीण नाव आदिकमां, एकन ए, पण गायनुं दूध, जम गुण अने दोषनी | नत्यत्ति करनारंबे, नेम जीवा प्रत्ये शन गुम्नं वचन पण गुणदोष करना है |॥॥ जीर्ष नया अजीण स्वरमा आदि शब्दयी पित्त नया प्य आदिकमां पण, जेम एकज एवं गायतुं दूध, अनुक्रमे गुणदोपनी जन्पत्ति करना थाय ; अर्यात् जीर्णज्वर तश पिन आदिकमां जैम ने गामकारी, नया नवा नावमां अने श्लेष्म आदिकमा दोपकार छ॥३॥ नेम गायना धनी फे मवरता आदिक गणोवाळ, बचे झोकमां हिनकारी, नथा एक सम्यम् धर्मने अपना गई मुगुग्नु वचन, योग्य तया अयोग्य जीवो प्रत्ये अनुक्रमे गुणदोपनी उत्पत्ति करना थाय ३ ॥ ४ ॥ | अर्यात् जीर्ण थयेना एत्रा मिथ्यात्व मोहनीयादिक कर्मपणा करीने योग्यो पन्य गुणकारी थाय छे; ( कोनी | |पेठे? तो के) श्री वर्षमान प्रजुनुं वचन जेम श्री इंद्रननि आदिको प्रत्ये, नया श्री पाव चापुत्र आचार्य- वचन जेम! | सुदर्शन शेन तया शुकपरित्राजक प्रत्ये ।। ५॥ श्री उपदेशरत्नाकर.
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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