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________________ ।। ६२ ।। ***** श्रीमदायनदशार्णजशुकपरिव्राजकाऽको जितसुदर्शनश्रेष्टिकुमारपालनूपत्वादिवद्वा ॥ ३० ॥ आदिशब्दाद् दृष्टांत चतुष्टयेऽपि प्रत्येकं योजितादशुचितमपकेकरुचिग्रामशकर, स्नानाद्यचिबोकुट, निर्मलपं किम जल्लोजयसमानम् चिम हिष, सरोनद्येकपरिशीअनचिचक्रवाकादिदृष्टांता अपि ज्ञेयाः ॥ ३१ ॥ एवं दृष्टांतोपदेशमधिगम्य शिवार्थिनिरुत्तरोत्तरदृष्टांतसदृशैः सर्वशक्त्या जाव्यं जन्यजीवैर्यन शिवसुखसंपदः करतअलुविताय सुप्रापा जयंतीति ॥ ३२ ॥ अथवा श्रीमान उदायन, दशार्णजद्र, शुक परिवाजकथी नहीं होनेला सुदर्शन शेव तथा कुमारपाळ राजा आदिकनी पेठे जाएवा ॥ ३० ॥ आदि शब्दयी ते चारे प्रतिमां अनुक्रमे दरेकनी साये जोनामां वना अत्यंत गंदा कावनी रुचिवाळा गामकाना सूकर (मूंग) स्नान आदिकन अरुचिवाळी श्रोमो, निर्मळ अने कवाल एम ने जानना जसमां तुझ्य रुचिवाको पाको. तळाव तथा नदीना जलनाज परिशीलननी रुचिवाली चक्रवाक, इत्यादि छतो पण जावां ॥ ३४ ॥ एवंी रीने तो उपदेशने मोहना अर्थी नव्य माणसांप उनगेत्तर दृष्टांत सरखा सर्व शक्तिश्री यं के जेथी मोसुरवनी संपदाओ जाणे हथेली मां सोनी होय नहीं, तेम मुझन थाय ॥ ३२ ॥ श्री उपदेशरत्नाकर.
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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