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इसत्ति, हो गया ताहा सगः गाय सोच वसन् रतिं कुरुते, निर्मनजन्नपानस्नानमृणासनणादिना सरस्येव तत्परिसरे वा तिष्ठन् शैत्यपावित्र्यसुखान्यनुनबन् रजोमयाऽपावित्र्यतापान विंदति ॥ २७ ॥ तथा केचिजीवाः सद्गुरूपदेशं श्रुत्वा तत्रैव रतिं कुर्वाणा मनोवाकायैस्तदनुध्यानतदनुगतसूत्राओंकारनणनतदनुष्टित्यादिन्निस्तदव परिशीनयंतो मिथ्यात्विवचनश्रवणोद्नवधर्माऽस्थैर्यादिमालिन्यवहारंजादिपाफ्नवक्झेशादितापान्नानुनवंति ॥ २० ॥ उत्तरोत्तरझानदर्शनदेशविरतिसर्व विरत्यनुष्टानाविजिरासन्नसिधिका एच नवंति, तस्मिन्नैव नवे हितीये वा नवे सिध्यति, आनंदादिश्रीवीरश्रावकदशवत् ॥ २५ ॥
बळी जेम हंस तवं तळाव पानि न्यनि बसतो थको आनंद करे ; नेमज निर्मळ नळ- पान स्नान तया | कमलना नहाण आदिक पूर्वक नळावमाज अयत्रा नेनी आसपासना प्रदेशमा रह्यो यको, नेमज शीनळता अने पवित्रताना मुखाने अनुजवतो यको रज, मेल नया अपवित्रता अने नापने जापनो नथी।। २७॥ नेम केटनाक जीवो सदगुम्नो उपदेश सांचळीने तेमांज अनिझाप करना थका मन, वचन अने कायावके करीने, ने मजब ध्यान, ने मुजब मृत्रार्य नद्धार, अत्यास अन ने मुजद क्रिया आदिकयी नेनुज पग्झिीझन करना थका मिथ्याविओना वचनोंने मांजळवाथी उन्यन्न थयेला धर्मनी अस्यिग्ना आदिक मेल, घाणा आग्न श्रादिकनुं पाप, नया संसारना कलेश आदिक तापने अनुजवता नयी ॥२०॥ नेमन उत्तरोत्तर झान, दर्शन, देशविरति नया मविरनि आदिकना अनुष्ठान आदिक वो करीने नजदीक मिकिचानाज थाय ने नया नेज वे अथवा बीजे से मोके जाय , ( कोनी पेठे? नोके) श्रीवीर प्रजुना पानंद आदिक दश श्रावकोनी परे | |
श्री जपदेशरत्नाकर