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इति नित्रुध्य घटोपमया स्फुटं तनुभृतो वि पंचविधान् बुधाः॥ सुकृनवासमत्राम्यतयोत्तमं ॥ श्रयत दुर्जयकर्मजयश्रिये ॥ ३० ॥
॥ इति सप्तमस्तरंगः ||
एवं
उपमार्थी जगन्मां पांच प्रकारना मनुष्योंने प्रगढ़ ने जार्थीने हे विधान नवमी aare eat fia धर्मी उत्तम वासनानो सुर्जय एवा कमने जीतवानी लक्ष्मी मा आश्रय करो ॥ २० ॥
॥ एत्री सानमा तरंग जाणो ||
श्री उपदेशरत्नाकर.