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________________ natu जनहिसुत्तित्ति, जन्नधिशुक्तिकासु सजीवासु, जबदे गर्जति वर्षति च स्वतावादूर्ध्व मुखं बिकाश्य स्थितासु स्वातिनहाने यावंतो यादृशा आणवः स्यूसा वा जलदजवबिंदवः पतात, तानि सदुदरेषु मौक्तिकानि जवंति ॥ ५२ एवं कचिदुत्तमेपु जीवेषु गुरवो यादृशानि यानि वचनान्युपदिशति. तानि तथैव परिणमंति, तदनुष्टानफलानि च नवंति ॥ ५३ ॥ 'नवसमश्वेिगसंवरेति' पदत्रयश्रोत्रनुष्टातृचिवातीपुत्रवत. 'मिठं जुजेअव्वं, सुदं सुणअव्वं, बोगखिओ अप्पा काययो. इति पदत्रयं पित्रोक्तं श्रुत्वा विमोचनमंत्रिपार्धात्तदर्थमवगम्य च तथैवानुष्टातृसोमवमुत्राह्मणयचा, एते चासन्नसिछिकाः. तृतीयादिसप्ताष्टांत वर्मुक्तिगामिनस्तवमुक्तिगामिन एव वा संजनि ॥pal ___ जनहिमुत्ति एटन समुद्रनी बीपी. के जत्रा जीववाळी हाय , नया जो स्कावीज बरसाद गाजने नया वरसत ते उंचां मुग्य फामनि रहनी हाय में मां वानि नामां दनां अने जेवां नानां अथवा माटां बग्मावना जळ विसु को छ, नेवां नेत्राना पेटगां मोती याय वे ॥ ५५ ॥ एवी रनि केदशाक उत्तम जीवी तें सुना नेवाज बननो उपद है, न ताज परिणाम न, अन ने प्रमाणे अनु-18 धानना फनावाच्य थाय न ।। ५ ।। (कोनी प? तोके) पाम, विवक ने संवर प बाा ए सांजन्नार तथा त प्रमाणे अनुष्ठान करनार चिलानी पुत्रनी पें, अथवा पीवं करीने खाचं. मुख मु→ तथा झोकप्रिय आत्मा करवा एवी रीतना दिनाए कहला त्राणे वचनो सांगीन, तथा त्रिवाचन मंत्री पामे-18 थी तेनो अर्थ जाणन नेज प्रमाण अनुदान करनार सोमवमु बामएनी पै; एवी रीतना मनुम्यां नजदीक सिद्धिव.ब्य. पवा श्रीनायी मामी सान आलयमृधिमा माटी मनाग अथवा जवे मोदी जनारा संजय ॥४ श्री जपदंशग्न्नाकर.
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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