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________________ ॥ ४ ॥ बहूपदेशे तु किंचिद् जावोत्पत्या दाचिएयादिना वा जिनगुरुनामनाऽनंतकायाऽजयादिल स्थूलहिंसादिनियमनमस्कार गुणन सामायिकाबश्यकादीनां स्वत्पत्नावचित्तैकाव्याजाव्यसम्यग् विध्यनादरादिनाऽपफलत्वेन नीरसानां क्रियतां प्रतिपत्तिरनुष्टितिश्च स्यात् ॥१९॥ न तु दृढावादिनिर्महाफलन सरसानां शुद्धदर्शनदेशवितिस चित्तपरिहारब्रह्मवतसर्ववित्यादीनां ॥ २० ॥ ते च क्रियारुचा पुड्गपरावर्त्तेन मुहूर्तमपि सम्यक्त्परित्यागपरावर्तन कियायासादिना जवांतरे, कदाचित सभ्यज्ञान किया जा दिना स्वल्पैरपि वा जत्रैर्मुक्तौ गामिन एव, तत्काचमनुजव्यंतरा दिनप्रभुति श्यामलवणिग्वत्, तथाहि ॥ २१ ॥ बळी तेने जो उपदेश देवामां आवे तो पत्नी केक जाव उत्पन्न स्वार्थी अपन दाक्षिणा करीने जिनने तथा गुरुने नमस्कार करवामां तथा अनंतकाय ने अक आदिक रूप स्थूलाई सा आदिका नियम नमस्कार गणनामा तथा सामायिक अने आवश्यक आदिकां यांगो नाव: चिनना एकाग्रप | सम्यगविधिना अनादर आदिकायें करने अप फळरूपे केली नीरस क्रियाओनो श्री कार तथा तेनुं अनुष्टान याय जे || १७ || परंतु व जाव यादव करीने महान फळस्पे नी वाली पत्री वृद्ध समकीत, देश विरति सजिनो त्याग, ब्रह्मचर्य व्रत तथा सर्व विरति आदिक रूप त्रियायांनी स्वीकार तथा अनुष्टान तो करें। शकता नये ॥ २० ॥ बळी ते क्रियानी चित्रमे करीने पुढगलपरावतं तेमज मुहूर्तमात्र सकी ती माती अपुगलतराव तथा क्रियाना अभ्यास आदिकवके करीने ज्यांतरां तेमज ने कियाar ma आदिकमे करीने थोगा जवोम पण मोगामीज होय छे; तथा तत्काळ आदिकनावाने व्यामय वणिकनी पत्रे प्राप्त प्याय जे ते श्यामझवल्किनुं उदाहरण कहें · कदाच सम्यग ज्ञान मनुष्य तथा व्यंतर ॥ २२ ॥ 00000 000 श्री उपदेशरत्नाकर.
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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