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________________ पामरो लोकप्रसिकः, तस्य समः, पामरस्वरूपं च कथानकाद् इयं, नश्चेदं, तयाहि शालिग्रामे कश्चित्कौटुंबिकः, तस्य शरदि पक्वः शामिः, कर्मकरं गवेषयता च तेन दृष्टो निझां नमन् पामर एकः ॥ ३६ ॥ गोजितो दधिकरण, नणितश्च यदि मे ऋषिक्षवनादि कपि तदा नित्यमोहग् लोजयामि, तेनोनं करामि, परं न वेनि कयं क्रियत इति ॥ ३४ ॥ कौटुंबिकेनोक्तं शिफ्यामि अन्येनाचे एवमस्तु, कौटुंबिकः प्राह यद्यथादं करोमि नत्वयापि नव कार्य. तेनोक्तमस्वेवं ॥ ३० ॥ ततः पामरम्य नीरघटमर्पयित्वा गणिकां गृहीत्वा प्रवृत्तः कृत्रं प्रति, गत्वा च नत्र किप्ता कौटुंबिकेन उगणिका ॥३॥ पामर (एटने समन विनाना) अने ने बाकामां प्रसिद्ध हैं, तना सम्बो; बळी न पामगर्नु स्वरूप कयायी | नाग ने नीचे मुजब डे, ने कहे :-शानि नामना गाममां कोड़क कुटुंबी रहनो हना; शग्द अतृमां ननां | | (बनरमां) कमोद पाकी, तेथीत कोई चाकरन शोधचा झाग्यो, एट्यामां रिका माटे स्वमना एक पामग्ने नेणे जाया ॥ ३६॥ नन दही हात म्वत्रगन्या, अन पछी नेने कयु के. जो तुं मागं वनग्नी कापणी आदिकनुं काम करीश, नो हुँ तने हमेशां प्रारं ग्ववगदीश, न्यार नणं कयु के, हुँ करीश, परंतु कम कर? ते ९ जागना || नयी ॥३७॥ कौटुंबिक कछु के, हूं नने शीग्खात्रीश; न्यार ते पामर कयु के, बहु माङ, पछी काटुंबिक नेने का के, जे कंद हूं जबी रीने करूं, ने तार पण नवी रीते करवं; न्यारे पामरे का के. बहु मा ।। ३७ ॥ पड़ी ने पामरने पाणीनी यो पापीने, तया पाने गण एक कम्बानी पावकी ने बतर नवा झाम्या न्यां जाने ने काहविक ने पावनी ग्वनरमा फगावी ॥ ३ ॥ श्री उपदेशरत्नाकर
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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