SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशवीर निवेदन प्रकाश को य नि वे द न अनन्त करुगाना महासागर, देवाधिदेव, चरमतीर्थपति, भगवान श्री वर्धमान स्वामीनी तथा मारा धर्मदाता, सुविशुद्ध जिनमाना प्ररूपणया तिलमात्र पण चलित न बनार, आ दु:पमकालमा पण जिनधर्मनी अद्भुत प्रभावना करवा द्वारा प्राचीन आचार्य भगवनोनी स्मृत्तिने ताजी करायता, अनेक जीवोने बोधिबीज प्राप्त करावनार, व्याख्यानवाचस्पनि, मुविशाल मुनिगणना अधिनि, आचार्य शरोमणि, प्रात:स्मरणीय, श्री धी श्री श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजीमहाराजनी आचन्त्य कृपाना योगे श्रुतज्ञानप्रकाशनमालाना प्रथम पुष्प रूप आ श्री त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित दशम पर्व ग्रन्थ ते परमात्मा श्रमणभगवान श्री वर्धमानस्वामी प्रति अनन्यभक्तिभाव धरनारा एबा आ ग्रन्थना अधिकारी महानुभावो समक्ष मूकबानी तक मळवा बदल अनुएम आनंद अनुभवु छु मारा परमतारक गुरुदेव, आचार्यशिरोमणि, श्रीमद विजयरामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज, पोतानी धर्मदेशनामां, पुण्यना योगे प्राप्त थवेला धननो सात क्षेत्रोमां व्यय की लेवानो उपदेश निरंतर आपता ज रह्या छे. ते पैकी जिनागमनी भक्ति र पण एक महत्त्वन क्षेत्र के ते हुं सांभळतो हती, बीजी तरफ त्रिषष्टि शलाकापुरुषचरिन ग्रन्थन दशमु पर्व छेल्लां केटलांय वर्षोधी अप्राप्य नहीं तो दुष्प्राप्य बनी गयुं हतुं अने गनं पुनर्मुद्रण करावबानी अति जरूरत छे ग पण अवारनवार सांभळवा मळतुं तुं. परन्तु, पन मुद्रण कोड विशिष्ट कोटिए थाय तो ठीक एम पण केटलाक नहानुभावोन मानधुं हतं. *CKitKARAM ॥ चार।
SR No.090518
Book TitleTrishashti Shalaka Purushcharitam Mahakavya
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSubodhchandra Nanalal Shah
PublisherGangabai Jain Charitable Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages439
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy