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________________ 90] प्रथम पुत्र-रत्न के मुखकमल को देखकर राजा दशरथ उसी प्रकार हर्षित हुए जिस प्रकार पूर्णचन्द्र के दर्शन से समुद्र हर्षित होता है। राजा चिन्तामणि रत्न की तरह याचकों को वांछित वस्तुएँ दान देने लगे। लोकश्रुति है पुत्र उत्पन्न होने पर दिया गया दान अक्षय होता है। (श्लोक १७८-१७९) उसी समय लोक में इतना हर्ष हुआ कि लगा राजा की अपेक्षा नागरिकों को ही अधिक प्रसन्नता हुई है। वे लोग दूर्वा, फूल, फलों से पूर्ण मङ्गलमय पात्र राजप्रासाद में लाने लगे। नगर के घर-घर में मङ्गलगान होने लगा। पथ पर केशर से सुवासित जल का छिड़काव किया गया। द्वार-द्वार पर तोरण बाँधे गए। उस पुत्र के प्रभाव से अन्य राजाओं के यहाँ से भी राजा दशरथ के पास अप्रत्याशित उपहार आने लगे। राजा दशरथ ने पद्मालक्ष्मी के निवास पद्म रूप उस पुत्र का नाम रखा पद्म; किन्तु लोक में वह राम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। (श्लोक १८०-१८४) तदुपरान्त रानी सुमित्रा ने रात्रि के शेष याम में वासुदेव के जन्म सूचक हस्ती, सिंह, सूर्य, चन्द्र, अग्नि, लक्ष्मी और समुद्र इन सात स्वप्नों को देखा । उसी समय एक परम महद्धिक देव ने देव लोक से च्यूत होकर सुमित्रा के गर्भ में प्रवेश किया। यथा समय सुमित्रा ने भी वर्षा ऋतु के मेघ से वर्णवाले सर्वलक्षण युक्त एक जगन्मित्र पुत्र को जन्म दिया। (श्लोक १८५-१८७) ___ उस समय राजा दशरथ ने समस्त नगर के अर्हत् चैत्यों में स्नान पूर्वक मष्ट प्रकारी पूजा करवाई और कारागार से बन्दियों को यहाँ तक कि शत्रुओं को भी मुक्त कर दिया। कहा भी गया हैं उसम पुरुष के जन्म लेने पर कौन सुखपूर्वक नहीं रहता? (श्लोक १८८-१८९) उस समय प्रजा सहित केवल राजा ही प्रफुल्लित नहीं हुए देवी पृथ्वी भी उच्छ्वसित हो उठी। राजा ने राम जन्म के समय जितना उत्सव किया था उससे भी अधिक उत्सव इस समय किया। क्या हर्ष से कोई भी तृप्त हुआ है ? दशरथ ने इस पुत्र का नाम नारायण रखा; किन्तु लोक में वह लक्ष्मण नाम से प्रसिद्ध हुआ। (श्लोक १९०-१९२) दूध पीने वाले दोनों शिशुओं ने क्रमशः पिता की दाढ़ी के
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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