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________________ [91 केश खींचने की उम्र प्राप्त की। धात्रिओं द्वारा पालित उन दोनों कुमारों को राजा दशरथ अपनी दोनों भुजाओं की तरह देखने लगे। स्पर्श मात्र से मानो देह में अमृत सिंचन कर देते हो इस प्रकार बे सभास्थित लोगों की एक गोद से दूसरी गोद में बार-बार जाने लगे। (श्लोक १९३-१९४) अनुक्रम से दोनों बड़े हो गए। दोनों नीलाम्बर और पीताम्बर पहन कर चरणों के दबाब से पृथ्वी को कम्पायमान करते हुए इधर-उधर घूमने लगे। मानो साक्षात् पुण्य राशि हो इस प्रकार उन दोनों ने कलाचार्य को मानो साक्षी रख कर ही समस्त कलाओं को अधिगत कर लिया। वे दोनों पराक्रमी भाई जैसे बर्फ को मुक्का मार कर चूर-चूर कर दिया जाता है उसी प्रकार बड़ेबड़े पर्वतों को मुष्टि प्रहार से चूर-चूर कर देते । व्यायामशाला में व्यायाम करने के समय तीर को जब वे प्रत्यंचा पर चढ़ाते तब सूर्य भी इस आशंका से काँप उठता मानो वे उसे तीरबद्ध करेंगे। वे मात्र अपने भुजबल से शत्रुओं के बल को तृणवत् समझते थे। उनके शस्त्रास्त्रों के सम्पूर्ण कौशल और अपार भुजबल के कारण राजा दशरथ स्वयं को असुरों से भी अजेय समझने लगे। (श्लोक १९५-२०१) कुछ काल व्यतीत होने पर राजा दशरथ अपने पुत्रों के पराक्रम से आश्वस्त होकर इक्ष्वाकुओं की राजधानी अयोध्या लौट गए । दुर्दशामुक्त दशरथ मेघ विमुक्त सूर्य की भाँति प्रताप से प्रकाशित होकर राज्य करने लगे। (श्लोक २०२-२०३) कुछ समय पश्चात् रानी कैकेयी ने शुभ स्वप्न द्वारा सूचित भरत क्षेत्र के अलङ्कार रूप भरत को जन्म दिया। सुप्रभा ने भी जिसकी भुजाओं का पराक्रम शत्रुघ्न-शत्रु नाशक है ऐसे कुलनन्दन शत्रुघ्न को जन्म दिया। दिन-रात एक साथ प्रेम प्रर्वक रहने के कारण भरत और शत्रुघ्न द्वितीय बलदेव और वासुदेव की भाँति सुशोभित होने लगे जैसे चार गजदन्ताकृति पर्वत द्वारा मेरु सुशोभित होता है। (श्लोक २०४-२०७) इसी जम्बूद्वीप के दारू नामक ग्राम में वसभूति नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी अनुकोशा नामक पत्नी के गर्भ से अतिभूति नामक पुत्र का जन्म हुआ। उसने सरसा नामक एक स्त्री
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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