________________
86]
अप्रमत्त रूप में पालन करने लगे। युद्ध में जयश्री को वरण करने की भांति उन्होंने दर्भस्थल (कुशस्थल) के राजा सुकोमल की पत्नी अमृतप्रभा के गर्भ से जात अपराजिता (कौशल्या) नामक रूपलावण्यवती और पवित्र कन्या से विवाह कर लिया। तदुपरान्त चन्द्र ने जैसे रोहिणी से विवाह किया उसी प्रकार कमलकुल नगर के राजा सुबन्धुतिलक की रानी मित्रादेवी के गर्भजात कैकेयी नामक कन्या का पाणिग्रहण किया। इसका द्वितीय नाम सुमित्रा था। कारण, वह मित्रा की कन्या और स्वभाव से सुशीला थी। इसके बाद उन्होंने पुण्य, लावण्य और सौन्दर्य से जिसकी देह सुशोभित थी ऐसी सुप्रभा नामक अनिन्दित राजकन्या के साथ विवाह किया। विवेकियों में अग्रगण्य राजा दशरथ धर्म और अर्थ को क्षुण्ण किए बिना इन तीन राजकन्याओं के साथ सुख-भोग करने लगे।
श्लोक ११६-१२६) ___ अर्द्ध भरत क्षेत्र के अधिकारी रावण ने एक बार एक नैमित्तिक से पूछा-'अमर तो देवों को ही कहा जाता है। तब यह निश्चित है कि संसारी प्राणियों की मृत्यु अवश्य होगी। अतः मुझे बताएँ मेरी मृत्यु स्वाभाविक रूप में होगी या अन्य किसी के हाथों से ? जो कुछ है स्पष्ट बताओ। कारण, पुरुष सदा स्पष्ट कथन ही करते हैं।' नैमित्तिक बोला-'जनक राजा की भावी कन्या के लिए दशरथ राजा के पुत्र के हाथों आपकी मृत्यु होगी।'
(श्लोक १२७-१३०) नैमित्तिक की बात सुनकर विभीषण बोला-'इस नैमित्तिक की बात सदैव सत्य ही होती है। किन्तु इस बार मैं इसके कथन को असत्य प्रतिपादित कर दूंगा। क्योंकि मैं भावी कन्या और पुत्र के अपदार्थ पिता बीज रूप जनक और दशरथ जो कि इस अनर्थ के कारण होंगे हत्या कर दूंगा। उनको मार डालने के पश्चात् जब कन्या और पुत्र होंगे ही नहीं तब नैमित्तिक का वचन झूठा हो जाएगा।'
(श्लोक १३१-१३३) रावण के सम्मत होने पर विभीषण उठा और अपने गृह गया। नारद जो कि उस सभा में उपस्थित थे, सब कुछ सुनकर दशरथ की राजसभा में गए। दूर से ही उन्हें आता देख दशरथ उठकर खड़े हो गए और उन्हें वन्दना कर गुरु की भांति सम्मान