SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 84] सौदास को मांस भोजन अत्यन्त प्रिय था। अतः उसने अपने रसोइए से कहा, 'छिपाकर मेरे लिए मांस ले आना; किन्तु राज्य में पशु हत्या निषिद्ध होने के कारण कहीं मांस प्राप्त नहीं हुआ। बाकाश-कुसुम की प्राप्ति की तरह या असत् वस्तु के लाभ की इच्छा की तरह रसोइए का समस्त प्रयत्न व्यर्थ हमा। वह सोचने लगा मैंने सब जगह मांस की खोज की; किन्तु कहीं मांस प्राप्त नहीं हुआ और राजा का आदेश है मांस लाने का। अब मैं क्या करू ? उसी समय उसने एक मृत बालक को देखा। वह तत्क्षण उस बालक का मांस काटकर ले आया और मसाला आदि देकर अच्छी तरह पकाकर राजा को खाने के लिए दिया। वह मांस खाकर राजा बड़ा परितृप्त हुआ और रसोइए से बोला, 'यह किस का मांस है ?' रसोइए ने उत्तर दिया, 'नरमांस ।' तब सौदास रसोइए से बोला, 'आज से तुम मुझे रोज नरमांस लाकर खिलाना।' तब रसोइया नगर से रोज एक बालक चराकर लाता और उसका मांस पकाकर राजा को खिलाता । अन्याय होने पर भी राजाज्ञा होने के कारण उसे कोई डर नहीं था। राजा ऐसा निष्ठर कार्य करता है यह जानकर मन्त्रीगण घर के साँप को जैसे जङ्गल में छोड़ दिया जाता है उसी प्रकार सौदास को राज्यभ्रष्ट कर जङ्गल में छोड़ आए और उसके पुत्र सिंहरथ को सिंहासन पर बैठाया । सौदास बाधारहित होकर अब नरमांस खाता हुआ घूमने लगा। (श्लोक ८८-९७) ___ एक बार घूमता हुआ सौदास दक्षिणापथ पर पाया। वहां उसने एक महर्षि को देखा। धर्म क्या है पूछने पर महर्षि ने उसे बर्हत् धर्म का उपदेश दिया जिसमें कि मद्य-मांस त्याग की मुख्यता है । धर्म सुनकर सौदास चकित हुआ और सदैव के लिए श्रावक-व्रत ग्रहण कर लिया और मद्य-मांस त्यागकर शान्त स्वभावी हो गया। (श्लोक ९८-१००) उसी समय उस नगर का राजा बिना पुत्र के मारा गया । वहां के मन्त्रीमण्डल ने पांच दिव्य प्रकट होने से सौदास को वहां का राजा बना दिया। _(श्लोक १०१) राजा ने स्वपुत्र सिंहरथ को दूत भेजकर अपनी अधीनता स्वीकार करने को कहा; किन्तु सिंहरथ ने दूत का तिरस्कार कर
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy