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________________ [75 वियोग में अग्नि प्रवेश कर रहे हैं और मैं आपके विरह में कितने दिनों से जीवित हूं। इसका मतलब है वे महान सत्त्वधारी हैं और मैं कम सत्त्वसम्पन्ना हं। नीलमणि और काँच के टुकड़े में जो पार्थक्य है वही मुझ और आप में है। इसमें मेरे सास-श्वसुर और माता-पिता का कोई दोष नहीं है। मैं भाग्यहीना हूं। मेरे कर्मों के दोष से ही यह सब घटित हुआ है। (श्लोक २५९-२६५) तब प्रतिसूर्य ने अंजना को समझाकर शान्त किया और हनुमान के साथ विमान में बैठाकर पवनञ्जय के संधान में निकल पड़े। वे भी पवनञ्जय को खोजते हुए भूतवन में आए । प्रहसित ने अश्रु सिक्त नयनों से उन्हें आते हुए देखा। उसने तुरन्त अंजना सहित प्रतिसूर्य के आगमन का सम्वाद प्रह्लाद और पवनञ्जय को दिया। प्रतिसूर्य और अंजना ने विमान से उतरकर दूर से ही प्रह्लाद को प्रणाम किया। निकट आते ही प्रह्लाद ने प्रतिसूर्य को आलिंगन में भर लिया। तदुपरान्त पौत्र हनुमान को गोद में लेकर हर्षोत्फुल्ल बने वे उनसे बोले-'हे भद्र प्रतिसूर्य, स्वकुटुम्ब सहित मैं दुःख-सागर में डूब रहा था, तुम्हीं ने हमको बचा लिया है। इसलिए मेरे समस्त कुटुम्ब और सम्बन्धियों में तुम्ही प्रथम हो। तुम्ही मिन हो। परम्परागत वंश-वृक्ष की गौरव रूप सन्तति के लिए कारणभूता अपनी पुत्रवधू को जिसे बिना दोष के ही घर से प्रताड़ित कर दिया था उसकी रक्षा कर तुमने महान् कार्य किया है ।' (श्लोक २६६-२७२) पवनञ्जय अंजना को देखकर दुःख से उसी प्रकार निवृत्त हो गए जैसे समुद्र में ज्वार-भाटा शान्त हो जाता है। विरहाग्नि के प्रशमित होने से हृदय प्रफुल्ल हो उठा । समस्त विद्याधर राजाओं ने विद्याबल से आनन्द सागर को उच्छ्वसित करने वाला चन्द्ररूप महोत्सव किया। तदुपरान्त सभी आनन्दमना बने हनुपुर गए। आकाश-पथ से उनके विमान को जाते देखकर ऐसा लगा मानो नक्षत्रों की पंक्तियां प्रवाहित हो रही हैं। मानसवेगा सहित राजा महेन्द्र भी वहां आए। केतुमती और अन्यान्य परिजन भी वहां पहुंचे । आत्मीय परिजन और बन्धुओं के आने के कारण विद्याधर राजाओं ने मिलकर वहां पहले से भी विशाल उत्सव किया। तत्पश्चात् परस्पर एक दूसरे से विदा लेकर वे सब अपनेअपने नगर को लौट गए। पवनञ्जय अंजना और पुत्र हनुमान
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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