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चिताग्नि में प्रवेश कर एक साथ जल रहा हूं। हे देवगण ! तुम लोग यदि कहीं भी मेरी प्रिया को देखो तो कहना, तुम्हारा वियोग सहन न कर सकने के कारण तुम्हारा पति अग्नि में प्रवेश कर गया है।'
(श्लोक २३८-२५०) ऐसा कहकर धू-धू जलती हुई चिता में उन्होंने जैसे ही कूदना चाहा वैसे ही प्रह्लाद ने जिसने सब कुछ देखा था और सुना था उन्हें पकड़ लिया और छाती से लगा लिया। (श्लोक २५१-२५२)
पवनंजय चिल्लाते हए बोल उठे, 'प्रिया के वियोग रूप पीडा की औषधि रूप मृत्यु में भी यह कैसा विघ्न ? किसने मुझे शान्ति प्राप्त करने में बाधा दी है ?'
(श्लोक २५३) अश्रु प्रवाहित करते हुए प्रह्लाद ने कहा, 'पुत्रवधू को निष्कासित करने को जिसने उपेक्षा की दृष्टि से देखा मैं वही तेरा पापी पिता हूं। हे वत्स, तुमने पहले एक विवेकहीन कार्य किया है और अब तुम बुद्धिमान होते हए भी इस प्रकार का अविवेकपूर्ण कार्य मत करो। स्थिर हो। तुम्हारी पत्नी की खोज में मैंने हजारों विद्याधर राजाओं को नियुक्त किया है। वे जब तक नहीं लौटें तब तक प्रतीक्षा करो।'
(श्लोक २५४-२५६) प्रह्लाद ने जिन सब विद्याधरों को पवनंजय और अंजना के सन्धान में भेजा था उनमें से एक दल हनुपुर भी गया। उन्होंने प्रतिसूर्य और अंजना को यह संवाद दिया कि पवनंजय ने अंजना के वियोग में दुःखी होकर अग्नि प्रवेश की प्रतिज्ञा कर ली है।
(श्लोक २५७-२५८) यह सुनकर किसी ने मानो उसे विषपान करा दिया हो इस प्रकार बार-बार 'हाय मैं मारी गई' चिल्लाती हुई अंजना मूच्छित हो गई। चन्दन जल के छींटों से और तालवन्त से हवा करने पर वह कुछ देर पश्चात् संज्ञा लौट आने पर उठ बैठी, और दीन भाव से रोती हुई विलाप करने लगी- पतिव्रता स्त्रियाँ पतिहीन होने पर अग्नि में प्रवेश करती हैं। कारण बिना पति के उनका जीवन शून्य हो जाता है; किन्तु जो श्रीमंत हैं, जिनके उपभोग के लिए हजारों स्त्रियाँ हैं, उसके लिए एक पत्नी का शोक तो क्षणिक होना ही है। ऐसा होने पर भी वे क्यों अग्नि-प्रवेश करने जा रहे हैं ? हे प्रिय, आपके क्षेत्र में यह अपवाद हुआ है ? आप मेरे